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________________ श्रह धम्मो स्वधरो अहवा निरंतरू सुरतरू वा । श्यचिंतिय तिपयाहिणपुषिं सा पणमिया पाए ॥५०॥ युग्मम् ४ संघट्टि य सहसा निउत्तमंगेण हरिसविवसाए । न हु पमिसिहा मुघा तेण य सा साहुणी गणिणा ॥१॥ दिछो ऽघमणेहिं समणेहिं तेहि ती वेखाए । तत्थागएहिं तबंदणत्यमच्चंतपावेहिं ॥ ५३॥ श्रह सो सूरी चिच्य तत्थेवाऽवितहसिछिपहदाया। मायानिम्मुक्कमणो गुणोथही मुणियसुत्तत्यो ॥ ५३॥ मियमदुरमंजुलाए सोमालाए गिरा जवाणं । सुत्तत्थमुवसंतो खंतो दंतो कह धम्मं ॥ ॥ तह चेव सद्दति य वहंति तस्साणुवित्तिमंगेसु । संसारुबिग्गमणा समणोवासगगणा तत्य ॥ ५५॥ तस्स य वरकाणखणे चलदसपुवंगसारमायायं । गन्हाचारपवत्तगमहानिसीहस्स पंचमज्जयणं ॥२६॥ एसा तग्गयगाहा समणायारम्मि जा निराबाहा । अवश्ना पमिपुन्ना गुणेहिं समणाण बहुमन्ना ॥ ७ ॥ जस्थित्थीकरफरिसं अंतरिय कारणेऽवि उप्पन्ने । अरिहावि करिजा सयं तं गळ मूखगुणमुकं ॥ ५० ॥ तो गोयम सावडायरिएणं अप्पसंकिरणेव । चिंतियमेवं चित्ते सुत्ते निस्संकिएणावि ॥ ५॥ जइ इह एवं गाहं जहज्यिं नणु कहेमि जएमज्के । तो तश्या अजाए वंदणवमियाए महपाया ॥६॥ संघट्टिया सिरेणं तं दिघमिमेहिं इसमणेहिं । जह मह सावजायरियनाममारोवियं सहसा ॥६१॥ तह किमविश्रन्नमविमेकाहिंति कुनामधिक्रमजा धुवाको वाखसमग साइविन हासमिह वहश६त्रिनिर्विशेषकम् | १ निर्जरतरः, देदीप्यमानदेवः 135 CAROKAMAL Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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