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________________ गामागरनगरेसुं विहरतो मुक्यं परिहरतो । संपत्तो तत्व पुरे चियवासिमुणीणमावसह ॥२४॥ सकारि य तेहिं अन्नुजणाणा य विणएणं । धम्मकहाकहणपरो सुहेण सो संठिन तत्थ ॥१५॥ कश्वयदिणाणि विच्चा तत्तो सो पुणवि विहरि खग्गो । नेगरिकत्तम्मिलिई चिरं सुसाहूण सोहकरी ॥२६॥ तसो पुरंतर्पतंगसरकणा तरकणात ते मिलिया। दुखियायारमुणीण चक्कवाला महाबाला ॥२७॥ जइ तुब्ने इत्थ पुरे जयवं गुणवंतयाण सिरमुषिणो । इक्कं कुणह पसन्ना वासारत्तस्स चलमासं ॥२०॥ तो तुम्हाऽऽणत्तीए बहुआएं चेश्याण निप्पत्ती । संपकर किजाइ सहगेहिं अम्हेहिं तह महिमा ॥ श्ए॥ युग्मम् - श्य दबलिंगिवयणान्नण नणियमित्थ सूरीहिं । जवि दुजिणालयाएं सेणी सिवगेह निस्सेणी॥३०॥ तहवि दु सावजामिमं मम निम्ममवित्तिवत्तिणो समणा। वायामित्तणविनाहमेयमिह थायरामि अहो ॥३१॥ युग्मम् | एवं पवयणसारं निस्संकं तेण वागरतेण । कुवलयपहेण गोयम समझियं तित्थयरगोत्तं ॥३॥ तेणेगनवावसेसीकडे महाऽत्तरोऽवि नवजलही। वह तेण तत्य दियो असमंजससंघमेलावो ॥ ३३ ॥ सिंगिणियाविंगीहिं मिलित्तु एगत्य तालिया दिन्ना। इंहो मस्स दि पंमिच्चं सच्चवाश्त्तं ॥ ३४॥ एवं पयंपिरेहिं निच्च थुपिरेहिं अप्पचरियस्स । कुबखयपहस्स विहियं सावळायरियनामेति ॥ ३५ ॥ नीयं च पसिद्धीए घिद्धी संगो असाहुवग्गस्स । तहवि दु सो नवि रूसइ तूसइ विहिएऽवि नेव हिए ॥ ३६ ॥ १ समूहाः. 133 तप.१:18 Jain Education Internet For Private & Personal use only Jww.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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