________________
उपदेश
सप्ततिका.
॥२०॥
5ARASH***%
तो सकसत्तो रन्ना पासाए गवि रयणचंदो। सो ताहि समं जोए मुंज रंज मणं तासि ॥ १५॥ पिठणा पुत्र अह मयणमंजरी कहसु श्रजा मह वडे । तुह स्वधरो को श्रासि मग्गिहे नवख्वधरो॥ ११ ॥ कज गर्छ सो एपिंह वत्ता मित्तंपि मज्क शकहित्ता । विनायवश्यरा सा पियरं पड़ जंप कुमारी ॥१५॥ तुह जामालयविलसियमेयं सबंपि ताय जाणाहि । तत्तो रेजियचित्तो राया तस्सत्तिमनिथुण ॥ १५३ ॥ जूचारिणोऽवि एवं स्वपरावत्तकारिणी विजा । अहह कहं संपजा परमेस सुखपुन्नुदढे ॥१५४॥
तत्तो गुणियनेहं वहूवरं नरवरो श्रपासिंसु । नियत्तिनिरवसेसं बहुमन्नइ रयणमेहवियं ॥ १५५॥ | अह हरिय मेघना ना केणावि नेव विडाए । तब्लकारयणमेहखमामुत्तवमुच्चसेलंमि ॥ १५६॥
सुवसंतसेलनामे करंतनिकरणनीरनिरामे । अनब्जमखमहतदंगरूवलावन्नबुधमणो ॥ १५७ ॥ युग्मम् ॥ संपन्नचित्तखेएण हेमचंदेण सबमपि विश्यं । विजाबलेण तस्स य जणावि विससियं कुमरो १५७ ॥ गण गणादागबमाणखयरे नरिंदनिद्देसा । पमिसेहित्तु कुमारो एगागी चविट सासी॥१५॥ पत्तो वसंतसेले दिछ धिो य तत्य घणनाउँ । पश्सोएण रुयंती पसोश्या रयणमेदखिया ॥ १६० ॥ रे खयर पस्सहर सजीनव अज जुज्फकजम्मि । श्ममकोसिय एवं तप्पासमुवागढ कुमरो ॥१६१ ॥ तत्तो खग्गमुदगर्ग जुज्कं तेर्सि परोप्परमसज्क। निरपहारविहुरं तं किच्चा तरकणा जिच्चा ॥१६॥ १ आमुक्तवान् २ स आसीत् .
116
%825
Jain Education in
For Private & Personal use only
(Civw.jainelibrary.org