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________________ उपदेश॥५६॥ सप्ततित्र %ERSEAS मा कुणसु नणु विसायं गयं वियाणितु पेयसीजुयखं । तं मिखही तुह भरा गयरायसमावदापस्सएए॥ गिएहसु चिंतारयणं चिंतियसबत्थसाहर्ग जद्द । जेण मणे मह तुझी संजाय तुह वयंसस्स ॥ ए६॥ दिन्नो पुन्नोदय गहि चिंतामणी कुमारेण । च (ख)वियं सुरेण गबसु ा तुम सेखवेय॥ए॥ चिहिनासु तुमं तिहि गंतुं निवहेमचंदगेहम्मि । तत्थयिस्स सबं संपकिस्सा तुह मणि ॥ ए॥ धम्मे जिपप्पणीए तुमए निच्चुऊमो विहेयवो । जम्हा धम्मायत्ता सबेजवि य सुरकसंजोगा ॥ एए॥ जह जलहरवुद्धीए वनीट समुझसंति पत्तेहिं । तह पुन्नसमुदएणं रिद्धीबुद्धीसमिशी ॥१०॥ शश जंपित्ता तत्तो पत्तो अमरो सुरालयं तुरियं । कुमरोऽवि गयएवबजनयरे चिंत इमं चित्ते ॥११॥ न हु ससुरगिहे गंतु मह जुजाइ लाहवं जळ तत्थ । तो मयणमंजरीए रूवं कालं जगाम तिहिं ॥१०॥ जगणीजण्या मिखिया कंठविलग्गा रुयंति गाढयरं । कत्थ गया श्रासि तुमं केणाणीया पुणो बहुला ॥१०॥ वु तीए सवं जह नीया खेयराहमेणाहं । आणित्तु रयणचंदेण रयणसेहरसुएणे । १०४॥ मुक्का कत्य गर्ड सो संपइ तेहिं कुमारिया पुष । सा शाह मं वारे मुत्तुं कवि गर्ड न मुखे ॥१०॥ कहमेस श्रणाहू धागड मग्गिहमि श रन्ना । तस्सन्नेसणको सुहमा सबत्य पविया ॥१६॥ शन्ने य अस्सवारा तेहिं समग्गदि कत्यवि न दिये। तत्तो वखितु राया विन्नविड नेव सो बसो॥१०॥ तबचावि न सुणिया को जाप कत्व सो तिरोडूठ। तो जा सविसा सह प्पियाए महीनाहो ॥१०॥ 112 EARCCESS ॥५६॥ Jain Education in For Private & Personal use only wp.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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