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________________ Jain Education International जा चि तत् खयं मम्मि साणंदचं कुमारो सो । वेगेण गयणमग्गे ताव स जाणुप्पहो पत्तो ॥ ८१ ॥ तं पिकिय सो रक रोसारुलोयणो घणुबेगा । रे रे सढुं करे कुरु खग्गमदं मारइस्सामि ॥ ८२ ॥ इय निठुरजासिलो पासमुवागम्म मुंबई खगं । गाढप्पहारमुग्गा मिऊण कुमरस्स निस्संकं ॥ ८३ ॥ वंचित्तु तप्पहारं सारं पुन्नोदयं स धारंतो । जलइ परिप्पहारं खग्गस्स महाउदग्गस्स ॥ ८४ ॥ पंचत्तमणुप्पत्ती तग्घायवसेण तरकणेणेसो । नजाउ रंजियार्ड पोरिसमसरिसं दहुं ॥ ८५ ॥ गिरिहन्तु जारिया तत्तो तुरियं स चलि कुमरो । सोवद्द्ववाणविई न सुंदरा होइ कस्सावि ॥ ८६ ॥ जव गर्ल वंतरमत्थ मिर्ज ताव वासराड़ीसो । तो वंसजालियाए गेहागारं धरतीए ॥ ८७ ॥ वित्त जारिया तम्मज्जे सो हुई सुनिचं (चिं) तो । तरवारिं करिय करे सयं वि तद्दुवारंमि ॥ ८८ ॥ जा पायसमए जा पिइ पाइणीजुयं कुमरो । ताव न पिरकर तत्थ छियार्ज तार्ज समहिला || ८ए ॥ ता विम्यमानो चिंत ता गया कत्थ हो । केवि श्रवहरिया नी हरिया अहव तार्ज || ए० ॥ एवं वसंत जा रायनंदणो चित्ते । पाउबभूव तावेगसुरो स जोश्य दिगंतो ॥ १ ॥ पुरवा सो अवी य जाणासि मं न वा सुजग । कुमरेणुत्तं नाहं मुणामि तो बोलए श्रमरो ॥ ए२ ॥ निसुसु सु श्रहं जो तुमए निजामि पुरा खयरो । जो सो श्रहं मरित्ता पंचमकप्पम्मि संजान ॥ ए३ ॥ इंदस्स समाधिकी देवो सेवोचि सुरगणस्स । जिलधम्माराह किं किं न हु सन्जए सुरकं ॥ ए४ ॥ 111 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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