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________________ GAG A SCASSET हट्ट वाणयस्स ठिया विस्तारया चविए त सत्थे । चिंतश् सो मज्ज इमो रूवयगो निंदियबो त्ति ॥४॥ एग नूपएसे गोवित्ता नउखगं स दम्माण । कागिणिवालणचं पठा वखि बिलरकमुहो॥५॥. कलहंतेण न खया कागणिया तेण वणियपासा । सो ननखगोवि सविएण दिछो उविजातो ॥६॥ सो तं गहित्तु नो रित्तं गाणं पलोखं दमगो। फुरंतो संपत्तो जवर्ष अहहा किमिह जायं ॥७॥ ॥इति चमकदृष्टान्तः॥ जूयोऽप्येतदर्थसूचकं दृष्टान्तं प्राहजहा कागिपिए देचं सहस्सं हारई नरो। श्रपर्ड अंबगं जुच्चा राया रीतु हारए ॥१॥ अब राजदृष्टान्तमेतदर्थसूचकंक्तिीयमाहथंबफखाऽजिन्नेणं कस्सइ रन्नो विसूश्या जाया । सा तस्स सुविहिं महया कोण निग्गसिया ॥१॥ नषि एवं जश् पुष खाहिसि अंबाणि तो विणस्तहिसि । तस्स य अंबाणि अप्पियाणि तेण य महीवश्णा ॥२॥ नियदेसे नचिन्ना अंबयरुरका स अन्नया राया। इयवाहणियाइ विणिग्गठे सह अमच्चेण ॥३॥ अस्सेणं श्रवहरि बहुमग्गविखंघणेण परिसंतो। सहसा म य तत्तो अंबवणे नूवई पत्तो॥४॥ चूअतरुनायाए स मंतिणा वारिउजवि विणिविणे । तस्स य हिरे दिणि तेण नणु अंबयफखाणि ॥५॥ पमियाणि वाचवसई परामुसइ सो करेण ताणि बहुं । पछा श्रग्याएवं खग्गो स गंधखोहेण ॥६॥ SANGAM ***** 103 For Plate & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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