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________________ श्रीआव- कुलं गयाणि, ते य कलसा, तहाहि-सो उत्तरमाहुरो वाणितो उवगिजंतो अपवा कयाइ मजइ, तस्स मज्जमाणस्स ते संयोगवि. श्यकमल- कलसा आगया, ततो सो तेहिं चेव मज्जितो, भोयणवेलाए तं सर्व भोयणभंडं उवडियं, सोऽवि साहू मिक्खं अडतो तं योगे मधुया वृत्ती घरं पविट्ठो, तत्थ सत्यवाहस्स धूया पढमजोवणे वदमाणी बीयणयं गहाय अच्छइ, ताहे सो साहू तं भोयणभंडं पेच्छा। रावणिजौ उपोद्घाते सत्यवाहेण मिक्खा नीयाविया, दिण्णेऽवि अच्छइ, ताहे पुच्छइ-किं भयवं! एवं चेहि पलोबेह, ताहे सो भणइ, न मम द्राचेडीए पओयणं, एवं भोयणभंडगं पलोएमि, ततो पुच्छइ-कतो ते एयस्स आगमो ?, सो भणइ-अजयपजयागयं, ॥४६७॥ तेण भणियं-सन्मावं साह, तेण भणिय-मम ण्हायंतस्स एवं चेव ण्हाणविही उवडिया, एवं सबोऽवि जेमणवेलाए भोयणविही, सिरिघराणिवि भरियाणि दिट्ठाणि, अदिवपुवा व वाणियगा आणेत्ता देति, ताहे सो भणइ-एयं सर्व मम आसि, सो ४ पुच्छइ-किह ?, ताहे साहू कहेइ पहाणादि, जइन पत्तियसि भोयणपत्तीखंड पेच्छ जाव ढोइयं, झडत्ति लग्गं, पिउणो नाम साहइ, ताहे नायं एस सो जामाउओ, ताहे सो उद्वित्ता अवयासेऊण परुण्णो, पच्छा भणइ-एवं सर्व तव तदव. त्यं अच्छइ, एसा ते घुबदिन्ना चेडी, पडिच्छसु अंति, सो भणइ-पुरिसो वा पुर्व कामभोगे विप्पजहइ, कामभोगा वा पुरिसं पुर्व विप्पजहेंति, ताहे सोऽवि संवेगमावन्नो, ममंपि एमेव विप्पजहिस्संतित्ति, पबइतो, तत्थ एगेण विप्पओगेण सा-5 माइयं लद्धं, एगेण संजोगेण लद्धति ७॥ ॥४६७॥ I इयाणि वसणेणं, दो भाउया, सगडेण वच्चंति, तत्थ चक्कबुंडा सगडवट्टाए लोढइ, महलेण मणिय-वचेह भंडिं, इयरेण वाहिया मंडी, सा सन्नी सुणेइ, ताहे चक्कण छिन्ना, मया, इत्यीय जाया हस्थिणउरे नगरे, सो महलतरागो पुर्व मरित्ता KOLKALIKAISEASE Jain Education inte For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600045
Book TitleAvashyakasutram Part_3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages312
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size18 MB
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