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________________ । अकामनिजरायां मेण्ठ श्रीआव- भणइ-मए अन्नो दिट्ठो, ताहे विवादे सा भणति-अहं अप्पाणं सोहेमि, एवं करेहि, ताहे ण्हाया जक्खघरं गया, तत्थ दयकमल- जो कारी सो दोण्हं जंघाणं अंतरेण वोलंततो लग्गइ, अकारी मुच्चइ, जक्खघरं गच्छंती य तेण पुरिसेण पिसायरूवं य० वृत्ती काऊण अंतरा अवगूहिता, ततो सा तत्थ गंतूण जक्खं भणइ-जो मम मायापिईहिं दिण्णिलतो तं च पिसायं मोत्तूण जइ उपोद्घाते, अण्णं जाणामि तो मे तुम जाणसित्ति भणंती झडत्ति अंतरेण वोलीणा, जक्खो विलक्खो चिंतेइ-पेच्छ केरिसं जायं?, अयंपि वंचितोऽणाए, नत्थि सतित्तणं धुत्तीए, लोगेण उक्किठिकलयलो कतो सुद्धा सुद्धा एमत्ति थेरो सण लोगेण हीलि॥४६२॥ तो, तस्स ताए अद्धितीए निद्दा नट्ठा, एयं रण्णा परंपरएण सुर्य जहा थेरो न सुयइ, ततो हक्कारेऊण अंतेउरपालओ कतो, अभिसेकं च हत्थिरयणं रण्णो वासघरस्स हेट्ठा बद्धं अच्छइ, देवी य हत्थिमेंठे आसत्तिया, नवरं रत्तिं हथिणा हत्थो कापसारितो सा ओयरिया, पुणरवि पभाए पडिविलइया, एवं वञ्चइ कालो, तमि दिणे अतिचिरं जायंति हत्थिमेंठेण हत्थि संकलाए आया, सा भणइ-सो पुरिसो न सुयइ मा रूसह, तं थेरो पेच्छइ, सो चिंतेइ-जइ एयातोवि एरिसीतो किंनु तातो अतिभद्दियातो इति निच्चिंतो सुत्तो, पभाए सबो लोगो उद्वितो, सो न उठेइ, रण्णो सिटुं, राया भणइ-सुवउ, सत्तमे दिवसे उद्वितो, रण्णा पुच्छितो, कहियं जहा एगा देवी, न याणामि कयरत्ति, सा एवं ववहरइ, ततो रण्णा भिंडमयो हत्थी कारावितो, सबातो अंतेउरियाओ भणियातो-एयस्स अच्चणियं करेत्ता उल्लंडेह, सवाहिं उल्लंडितो, सा नेच्छइ, भणइ-अहं बीहेमि, ताहे राइणा उप्पलेण आया, मुच्छिया किल पडिया, ताहे से उवगयं जहा एसा कारित्ति, भणिया य मत्तगयमारुहंतीए भिंडमयस्स गयस्स बीहंतीए। इह मुच्छिय उप्पलाया तत्थ न मुच्छिय संकलाहया॥शाजा पिट्ठी से निभा RSS RECORRECikc ॥४६२॥ in Education Intematonal For Private & Personal use only Miw.jainelibrary.org
SR No.600045
Book TitleAvashyakasutram Part_3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages312
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size18 MB
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