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________________ 4573 NAGARIKAAGAR आहडपिंड पइदिवसं आणेइ; पच्छा तं सबेसि पवइयाणं देइ, भणइ य-एवं बारस वरिसे भोत्त, मिक्खा य नत्थि, जइ जाणह उस्सरंति संजमगुणा तो भुंजह, अह जाणह नवि तो भत्तं पच्चक्खामो, ताहे भणंति-किं एरिसेण विजापिडेण भुत्तेण ?, भत्तं पञ्चक्खामोत्ति, एवं निच्छियववसाया जाया, आयरिएहिं पुवामेव नाऊण सिस्सो वइरसेणो नाम पेसणेण पठवितो, भणितो य-जाहे तुमं सयसहस्सनिष्फन्नं भिक्खं लभिहिसि ताहे जाणेज्जासि-जहा नहें दुभिक्खंति, ततो वइरसामी समणगणपरिवारितो एग पञ्चयं विलग्गिउमारद्धो, तत्थ भत्तं पञ्चक्खामोत्ति, एगो य तत्थ खुडगो, सोसाइहिं वुच्चइ-तुमं वच्च, सो नेच्छइ, ताहे सो एगंमि गामे तेहिं विमोहितो, पच्छा गिरि विलग्गा, खुड्डगो ताण गय*मग्गेण गंतूण मा तेसिं असमाही होउत्ति तस्सेव हेहा सिलायले पाओवगतो, ततो सो उण्हेण नवणीयमिव विराओ। अचिरकालेणेव कालगतो, देवेहिं महिमा कया, ताहे आयरिया भणंति-खुड्डएण अट्ठो साहितो, तत्य ते साहुणो दुगुणाणीयसड्डासंवेगा जाया, जइ ताव बालेण होतएण एवं कयं तो अम्हे कीस न सुंदरं करेमो ?, तत्य य देवया पडिणीया, ते साहुणो सावियारूवेण भत्तपाणेण निमंतेइ-अज मे पारणयं करेह, ताहे आयरिएहिं णायं-जहा अचियत्तोग्गहोत्ति, तत्थ य अन्भासे अन्नो गिरी, तं गया, तत्थ य देवयाए काउस्सग्गो कतो, सा आगंतूण भणइ-अहो मम अणुगहो, अच्छइ, तत्थ समाहीए कालगया, ततो इंदेण रहेण बंदिया, पयाहिणीकरेंतेण तरुवरादीणि दासिल्लाणि कयाणि, तेण तस्स रहावत्तो नाम जायं, तम्मि य भयवंते अद्धनारायं दस पुवा य वोच्छिन्ना। सो वइरसेणो जो पेसितो पेसणेण सो भमंतो सोपारयं पत्तो, तत्थ य साविया अहिगयजीवाजीवाइया ईसरी, सा 15 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.iainelibrary.org
SR No.600044
Book TitleAvashyakasutram Part_2
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size18 MB
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