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श्रीआवइयक मल- य. वृत्ती उपोद्घाते
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उजेणीए जो जंभगेहिं आणक्खिऊण थुअमहिओ। अक्खीणमहाणसि सीहगिरिपसंसियं वंदे ॥ ७६६॥ श्रीवज्रवृत्त
उज्जयिन्यां यो जृम्भकैर्देवविशेषः 'आणक्खिऊण'त्ति परीक्ष्य 'स्तुतमहितः' स्तुतो वास्तवेन महितो विद्यादानेन, अक्षीणमहानसिकं सीहगिरिप्रशंसितं वंदे इति गाथाक्षरार्थः॥ भावार्थः कथानकादवसेयः, तच्चेदम्
पुणरवि अन्नया जेह्रमासे सण्णाभूमि गयं घयपुण्णेहिं निमंतति, तत्थवि दवाइउवओगो, निच्छियं, तत्थ से नहगामिणी विजा दिण्णा, एवं सो विहरइ । ताणि य पयाणुसारिगहियाणि एक्कारस अंगाणि संजयाणं मूले थिरतराणि जायाणि, तत्थवि जो अज्झाइ उवरिल्लं पुवगयं तंपि सर्व गिण्हइ, एवं तेण बहुयं गहियं, जाहे वुच्चइ-पढाहि, ताहे सो एंतगपि कुटुंतो अच्छइ अण्णं सुणंतो, अन्नया आयरिया मज्झण्हे साहूसु भिक्खं निग्गएसु सण्णाभूमि गया, वइरसामीवि पडिस्सयवालो अच्छइ, सो तेसिं साहूणं वेंटियातो मंडलीए रइत्ता मज्झे अप्पणा ठाउं वायणं देइ, ताहे परिवाडीए * एक्कारसवि अंगाणि वाएइ पुबगयं च, ताव आयरिया आगया चिंतंति-लहुं साहू आगया, सुणइ सदं मेघोघरसियं, बहिया सुणंता अच्छंति, नायं जहा वइरोत्ति, पच्छा ओसरिऊण पुणो सहपडियं निसीहियं करेंति, मा से संका भवि. स्सइ, ताहे तेण तुरियं वेंटियाओ सट्ठाणे ठवियातो, निग्गंतूण दंडयं गेण्हइ पाए य पमजइ, ताहे आयरिया चिंतेतिमा एवं साहू परिभविस्संति तो जाणावेमि, ताहे रत्तिं आयरिया साहू आपुच्छंति-जहा अमुगं गाम वच्चामो, तत्थ ॥३८॥ दो तिन्नि वा दिवसे अच्छिस्सामो, तत्थ जोगपडिवनगा भणंति-अम्हं को वाणारिओ, आयरिया भणंति-वइरोत्ति, तेहिं विणीएहिं तहचि पडिसुयं, बायरिया गया, साहवोऽवि पडिलेहिता कालनिवेयणादि वइरस्स करेंति, ततो सर्वमि
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