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________________ ८४ ROOONAMESOMSHA ऐसें मंत्र पढ़ि अक्षतका पुज करनाप्रतिष्ठान ___ओं ही अद्य विवप्रतिष्ठामहोत्सवे वेदिकाशुद्धिविधाने अईसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुमंगललोको-18 चमशरणेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा । अक्षतम् । पुष्पैरनेकैरसवर्णगंधप्रभासुरैर्वासितदिग्वितानैः। अर्हन्मुखान् पंचपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगालिकान् यजेऽहं ॥ २६७ ॥ रस वर्ण गंध इन करि देदीप्यमान अरु सुगधित किया है दिशाका समूह जिननें, ऐसे अनेक पुष्पनि करि 'अरहंत' हैं मुख्य जिनमें || ऐसे पंचपदरूप परमेष्ठी शरण अरु लोकोत्तम अरु मगलरूप हैं तिनने में पूजू हूँ ॥२६७॥ ऐसे मंत्र पढ़ि पुष्पांजलि देना ओं ही अद्य विवप्रतिष्ठामहोत्सवे वेदिकाशुद्धिविधाने अईसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुमंगललोकोछत्तमशरणेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । पुष्पं । नैवेद्यपिंडेघृतशर्कराक्तहविष्यभागः सुरसाभिरामैः।। अर्हन्मुखान् पंचपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगलिकान् यजेऽहं ॥२६८॥ बहुरि घृत शर्करा करि व्याप्त है हविष्यान भाग जिनविर्षे अरु सुन्दर रसकार मनोज्ञ, ऐसे नैवेद्यको पंक्तिनकरि 'परहंत' हैं मुख्य जिनमें ऐसे पंचपदरूप परमेष्ठी शरण अरु लोकोत्तम अरु मंगलरूप हैं तिनने में पूज हूँ ॥२६॥ ऐसें मंत्र पढ़ि नैवेद्य स्थापन करना ओं ही अद्य विवप्रतिष्ठामहोत्सवे वेदिकाशुद्धिविधाने अर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुमंगललोकोचमशरणेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्यं । BHASHASHIRECTECAUSICALCISHERS RECORCHECE Jain Educatio n al For Private & Personal use only Delibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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