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________________ पाठ ८३ स्वच्छे लैस्तीर्थभवर्जरापमृत्यूग्ररोगापनुदे पुरस्तात् । प्रतिष्ठा अहन्मुखान् पंचपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगलिकान् यजेऽहं ॥ २६४ ॥ नियल अरु तीथसे उत्पन्न ऐसे जलनि करि जरा अपमृत्यु अर रोग इनिका नाशके अर्थि अग्रभागमें अहत हैं मुख्य जिनमें ऐसे पंच-1 IM पद-रूप परमेष्ठी शरण अरु लोकोत्तम अरु मगलरूप हैं तिनने में पूजू हूँ ॥२६॥ ऐसे मंत्र पदि जलधारा देवै___ओं ह्रीं अद्य विवप्रतिष्ठोत्सवे वेदिका विधाने अईसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुमंगललोकोचम|| शरणेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ जलं ॥ ___ सञ्चंदनै धहृतालिवृंदचितैर्हिमांशुप्रसरावदातेः । अर्हन्मुखान् पंचपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगलिकान यजेऽहं ॥ २६५ ॥ गंध करि हरथा है भ्रपर-समहका चित्त जिनने अरु चंद्रमाका प्रसर कहिए किरण तत्समान निर्मल ऐसे चंदन करि, 'अरहंत' हैं मुरू | जिनमें ऐसे पंचपदरूप परमेष्ठी शरण अरु लोकोत्तम अरु मंगलरूप हैं तिनने में पूजू हूँ ।। २६॥ ऐसे मात्र पढ़ि चंदन चढ़ाना ओं ह्रीं अद्य विवप्रतिष्ठामहोत्सवे वेदिकाशुद्धिविधाने अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुमंगललोकोचमशरणेभ्यश्रंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ चंदनं ॥ सदक्षतैर्मोक्तिककांतिपाटचरैः सितैर्मानसनेत्रमित्रैः। अर्हन्मुखान् पचपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगलिकान् यजेऽहं ॥ २६६ ॥ मोतीनकी कांतिकूहरनेवारे, स्वेत, अरु मन अर नेत्र इनकप्रिय, ऐसे समीचीन अखंडित अक्षतन करि अरहंत हैं मुख्य जिनमें ऐसे पंचपदरूप परमेष्ठी शरण अरु लोकोत्तम अरु मंगलरूप हैं तिनने में पूजू हूँ॥२६६ ॥ 334HI1434OKMELOPEOS Jain Educatio For Private & Personal Use Only malinelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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