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________________ GT- CINT AROADCAL ८५ REASIRECO पारातिकैरत्नसुवर्णरुक्मपात्रार्पितैर्ज्ञानविकाशहेतोः। अर्हन्मुखान् पञ्चपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगलिकान् यजेऽहं ॥ २६६ ॥ रत्नननिका अरु सुवर्ण-चांदोका पात्रमें स्थापित किये, ऐसे पारार्तिक दीपन करि ज्ञान प्रकाशनका हेतुते 'अरहन्त' हैं मुख्य जिनमें ऐसे चपदरूप परमेष्ठीका शरण अरु लोकोत्तम अरु मंगलरूप हैं तिनने में पूजू हूँ॥२६॥ असें दीपन करिआरती उतारनी ओं ही अद्य विवप्रतिष्ठोत्सवे वेदिकाशुद्धिविधाने अहमिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुमंगललोकोचमशरणेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा । दीपं । अाशासु यधूमवितानमृद्धं तैयूंपदैर्दहनोपसर्पः। अर्हन्मुखान् पंचपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगलिकान् यजेऽहं ॥ २७० ॥ सर्व दिशानमें श्रेष्ठ धूमकौ समूह फैलायौ भसा अग्निमैं क्षेपे धूपका समूह करि 'अरहंत' हैं मुख्य जिनमें ऐसे पंचपदरूप परमेष्ठी शरण ४ अरु लोकोत्तम अरु मंगलरूप हैं तिनने मैं पूजू हूँ ॥२७॥ ऐसे मंत्र पढ़ि धूप क्षेपना___ओं ह्रीं अद्य विवप्रतिष्ठोत्सवे वेदिकाशुद्धिविधाने अहसिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुमंगललोकोचमशरणेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा । धूपं । फलैरसालैवरदाडिमाद्यैर्द्धघाणहार्येरमलैरुदारैः। अर्हन्मुखान् पंचपदान् शरण्यान् लोकोत्तमान्मांगलिकान् यजेऽहं ॥ २७ ॥ सुन्दर सरस मनोज्ञ फल आदि हृदय अरु नासिकाकू प्रिय अरु प्रचुर अनेक फलनि करि 'अरहंत' हैं मुख्य जिनमें ऐसे पंचपदरूप परट्रा मेष्ठी शरण अरु लोकोत्तम अरु मंगल रूप हैं तिनने में पूजू हूँ॥२७१॥ G ADAHORECANAKAAS RREGIES - Jain Education For Private & Personal Use Only Bibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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