SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिष्ठा ६ जुत्ताणं सब्बसाहूणं णिच्चकालं अंचमि पूजमि बंदामि णमस्सामि दुक्खक्खय कम्मक्खय बोहिलहोई सुग- ॥ इगमणं सम्मं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं ॥२५॥ इति योगभक्तिपाठः। अब इष्ट प्रार्थना करता हूँ। योग भक्ति करता हूँ कायोत्सर्ग धारण करता हूं, उसकी आलोचनामें में आतापन वृक्षमूल अब्भोवास, || स्थान, मौन, वीरासन, एकवास, कुक्क टासन आदि योगोंसे युक्त समस्त साधुओंको सदा पूजता हूं बंदना करता हूं, नमस्कार करता हूं। परे दुखोंका क्षय, काँका क्षय हो, बोधिलाभ हो, सुगतिमें गमन हो, सम्यक्त्वकी प्राप्ति हो, समाधिमरण हो, और मुझे जिनेंद्र भगवानके Bा गुण प्राप्त हों। इसप्रकार योगभक्ति पाठ समाप्त हुआ। 43491559A%863G-SAMA एवं यत्र यस्या भक्तेरावश्यकता तत्र अस्मात् पाठोहितेच्छुना विधेयः, पश्चात सर्वत्रांते कायोत्सर्गा- ॥४॥ || दिगवार्येणेंद्रेण वा तचस्क्रियावता करणीय इति दिक् । इस प्रकार जहां जिस भक्तिकी आवश्यकता हो, उस जगह वह पाठ इस ग्रन्थसे हित चाहनेवाले आचार्य अथवा इंद्रको अथवा अन्य Pउचित क्रिया करनेवालेको पढना चाहिये और पाठके वाद सर्वत्र अंतमें कायोत्सग धारण करना चाहिये ॥ अथ निर्वाणभक्तिपाठः। अब निर्वाणभक्ति पाठ कहते हैंतद्यथा-इच्छामि भंते परिणिबाणभचि काओसग्गो को तस्सालोचेओ इमम्मि असप्पिणीए ६ चउत्थसमयस्स पच्छिमे भागे आहट्टयमाप्तहीणे वासचउक्कम्मि सेसकालम्भि पावाए णयरीए कचियमासस्स किण्हचउद्दसिए रचीए सादीए णखत्ते पच्चूसे भयवदोमहदि महावीरो वड्ढमाणो सिद्धिंगदो तीसुवि Pलोएसु भवणवासियवाणवितरजोइसिह कप्पवासिय चि चउबिहा देवा सपरिवारादिवेण गंधण दिव्वेण || RECASEKASALALASAHARSAMACHAR ON Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only library.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy