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________________ मातष्ठा το Jain Educatio पुप्फेण दिव्वेण धूवेण दिव्वेण चुण्णेण दिव्वेण वामेण दिव्वेण ण्हाणेण णिञ्चकालं अञ्चति पुज्नंति बंदंति णसंति परिणिव्वाणमहाकल्लाणपुज्जं करंति अहमवि इहसतो तत्थ सत्ताह णिञ्चकालं अंचेमि पूजेमि बंदामि नमस्सामि परिणिव्वाण महाकल्लाणपुज्जं करेमि दुक्खक्खओ कम्मलओ बोहिलाओ सुगहगमणं सम्मं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं । इति पूर्वाचार्यानुक्रमेण कर्मक्षयार्थं भावपूजा भावबंदनासमेतं कायोत्सर्गं करोमि इतेि तत्तत्क्रिया निष्ठापनीया । अन्योऽपि पाठः क्रियासंपत्त्यै कर्मनिर्जरायै च कार्यः प्रामाणिकः । इत्थं निर्वाणभक्तिः । वह इस प्रकार है— इष्ट प्रार्थना करता हू ं । निर्वाण भक्तिमें कायोत्सर्ग करता हूँ । उसकी आलोचना यह है कि इस अवसर्पिणीके चतुर्थ कालके अंतिम भागमें आठ मास हीन चार वर्ष समय रह गया उस समय पावा नगरीमें कार्तिक मासको कृष्ण चतुर्दशीकी रात्रिको स्वाति नक्षत्र के उदयमें प्रातः काल श्रीमहावीर वर्द्धमान मुक्तिको प्राप्त हुये इसलिये उस समय तीनो लोकोंके भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी ओर कल्पवासी चारो प्रकारके देव सपरिवार दिव्य गंध, दिव्य पुष्प, दिव्य धूप, दिव्य चूर्ण, दिव्य वस्त्र, दिव्य स्नानसे सदा पूजन करते हैं, बंदना करते हैं, परिनिर्वाण कल्याणकी पूजन करते हैं, उसी प्रकार में भी यहां रह कर ही उस समय जिनेंद्र भगवान की सदा पूजा करता हूं, बंदना करता हूँ, नमस्कार करता हू औ परिनिर्वाण कल्याणकी पूजन करता हूँ । मेरे दुःखोंका क्षय हो, कमका नाश हो, बोधिकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन, सम्यक्त्वकी प्राप्ति, समाधिमरणका लाभ हो और मुझे जिनेंद्र भगवानकेसे गुणोंकी प्राप्ति हो । इसप्रकार पूर्वाचार्योंके अनुक्रमसे कम के नाशार्थ भावपूजा वंदनासहित मैं कायोत्सर्ग धारण करता हूँ । इसके बाद जिस जिस क्रियाके अतमें यह पाठ पढा जाय वह समाप्त करनी चाहिये । इसीप्रकार के अन्य भी प्रामाणिक पाठ क्रियाकी पूर्णता और कर्मों की निर्जराके लिये करने चाहिये । या प्रकार मूल ग्रन्थकर्ता ग्रंथांतर प्रबंधित आचार्यादि भक्तिका पाठ लिख्या, याका अर्थ नहीं लिखा; अन्यत्र पाइए है इस वास्तै । अरु पूर्वाचार्य मंत्रविषै अर क्रियानमें अधिक शक्ति कही है। अर इन विना अन्य भी उपयोगी पाठ जप स्तव आदि हैं सो क्रियाकी पुष्टिनिमित्त तथा कर्म -निर्जराथ करना जो प्रमाणीक होय; सो । ional For Private & Personal Use Only पाठ το elibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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