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________________ भतिष्ठा पाठ SECRECCASRHARUGESHINAGARL+SHIBIPIES जिनके अष्टकर्म नष्ट होगये हैं, संसार जिनका छुट गया है, जो परमपदमें विराजमान हैं, और जो आठ गुणोंके ईश्वर हैं उन्हें में नमस्कार करता हूँ॥६॥ णवबंभचेरगुत्ते णवणयसब्भावजाणगे बंदे। दसविहधम्मट्ठाई दससंजमसंजुदे बंदे ॥७॥ जो नव प्रकारके ब्रह्मचर्यको पालते हैं, जो नय सदभावके ज्ञाता हैं, जो उत्तम क्षमादि दश प्रकारके धर्म के पालक हैं, दशमकारके संयमसे ६। संयुक्त हैं उन्हें मैं नमस्कार करता हूं ॥७॥ एयारसंगसुदसायरपारगे बारसंगसुदणिउणे। बारसविहतवणिरदे तेरसकिरयापडे बंदे ॥ ८॥ जो द्वादश अंगरूप श्रत समुद्र के पारको पहुच गये हैं, बारह प्रकारके तप करनेमें रत हैं, त्रयोदश प्रकारके चारित्रको पालते हैं उन्हें में नमस्कार करता हूँ॥८॥ भूदेसु दयावरणे चउ दस चउदस सुगंथपरिसुद्ध । चउदसपुव्वपगब्भे चउदसमलवज्जिदे बंदे ॥६॥ जो समस्त जीवोंपर दया करते हैं, चौवीस प्रकारके परिग्रहसे रहित हैं, चौदहपूर्वके पाठी हैं, और चौदह प्रकारके पलसे रहित हैं उन्हें में * बंदना करता हूँ॥६॥ बंदे चउत्थभत्तादिजावछम्मासखवणिपडिपुगणे । बंदे आदावते सूरस्स य अहिमुहट्ठिदे सूरे ॥ १०॥ जो मुनिराज वेला तेला आदि छह मास तकके उपवासोंको करते हैं, जो सूर्यके सन्मुख खड़े होकर तप तपते हैं उनको मैं नमस्कार करता हूं ॥१०॥ Jain Education l lonal For Private & Personal Use Only uw lelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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