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________________ प्रतिष्ठा पाठ SEARRORIEOSRA Dom BHARTICLECTRICISISGARBASNA सम्म चेव य भावे मिच्छाभावे तहे व बोद्धव्वा । चइऊण मिच्छभावे सम्ममि उवट्ठिदे बंदे ॥ २ ॥ जोवके सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दो प्रकारके भाव होते हैं उनमेंसे जिनके मिथ्यात्वभाव कूटकर शुद्ध 'सम्यक्त्वभाव-सम्यग्दर्शन माप्त हो गया है उन्हें में नमस्कार करता हू ॥२॥ दोदोसविप्पमुक्के तिदंडविरदे तिसल्लपरिसुद्ध । तिरिणयगारवरहिए तियरणसुद्धं णमस्सामि ॥ ३ ॥ जो रागद पसे विनमुक्त हैं, त्रिदंडसे विरत है, तीनों शल्योंसे शुद्ध हैं, जो तीन गारव दोषोसे रहित हैं, और जो त्रिकरणसे विशुद्ध हैं उन्हें मैं नमस्कार करता हूं ॥३॥ चउविहकसायमहणे चउगइसंसारगमणभयभीए। पंचासवपडिविरदे पंचेंदियणिजदे बंदे ॥ ४॥ जिनके चारो कषाय कृश होगये हैं, जो चार प्रकारके संसारमें भ्रमण करनेसे भयभीत हैं, जो पांचों पापोंसे विरत हैं, जिन्होंने पांचों इंद्रियोंको जीत लिया है उन्हें में बंदना करता हूँ॥४॥ छज्जीवदयावरणे छडायदणविवज्जिये समिदभावे। सत्तभयविप्पमुक्के सत्ताणभयंकरे बंदे ॥ ५॥ जो सदा षड् कायके जीवोंपर दया करते हैं, छह अनायतनसे जो रहित हैं, जो शांत हैं, सात प्रकारके भयोंसे मुक्त हैं, समस्त प्राणियोंको अभय देनेवाले हैं उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ ॥५॥ णदट्ठमघट्ठाणे पणट्ठकम्मट्ठणठ्ठसंसारे । परमट्ठणिट्ठिमढे अट्टगुणट्ठीसरे बंदे ॥ ६ ॥ BHSICORRESPEECIBAR ७०. Jain Education For Private & Personal use only arelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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