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________________ भतिष्ठा ६ ६ Jain Education घाइकम्मविघातत्थं घाइकम्मविणासिणा । भासियं भव्वजीवाणं चारित्तं पंचभेददो ॥ ३॥ उन घातिया कर्मोंके नष्ट करने वाले भगवानने भव्यजीवोंको घातिया कर्म नष्ट करनेके लिये पांचमकारके चारित्रका उपदेश दिया है ॥३॥ सामायियं तु चारित्तं छेदोवड्ढावणं तहा । तं परिहारविसुद्धिं च संयमं सुहमं पुणो ॥ ४ ॥ जहाखायं तु चारितं तहाखायं तु तं पुणे । किच्चाहं पंचहाचारं मंगलं मलसोहणं ॥ ५ ॥ वह चारित्र—सामायिक, क्छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मपराय, और ययाख्यात वा तथाख्यात भेदसे पांच प्रकारका है और यह पांचों प्रकारका चारित्र पापका नाशक मंगलमय है ॥ ४-५ ॥ अहिंसादीणि वृत्तानि महव्वयाणि पंचय । समिदी तदो पंच पंचइंदियणिग्गहो ॥ ६ ॥ छब्यावासभूसिज्जा हाणत्तमचेलदा । लोयत्तं ठिदिभुत्तिं च अदंतवणमेव च ॥ ७ ॥ एयभत्तेण संजुत्ता रिसिमूलगुणा तहा । दधम्मा तिगुती सीलागि सयलागि य ॥ ८ ॥ सव्वे वि य परीसहा वृत्तत्तरगुणा तहा । वि भासिया संता तेसिंहाणीमयेकया ॥ ६ ॥ अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, और निःसंगता ये पांच महाव्रत, पांच समिति, पांचों इन्द्रियों का निग्रह, छह प्रकारके आवश्यकोंका पालन, For Private & Personal Use Only पाठ ६६ www.jainelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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