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________________ प्रतिष्ठा ६८ 194% ACHECREOGReviewee मासिओय पुत्वमय चूलिया चेव सुतत्थयत्थुइधम्मकहाइयं सुदं णिचकालं अंचेमि पूजेमि बंदामि णम-18| म्सामि दुक्खस्खओ कम्मखओ बोहिलाओ सुगहगमणं सम्मं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं ॥ || ___मैं अभीष्टार्थ कहता हूँ मैंने श्र तभक्ति करनेके लिये कायोत्सर्ग किया है। उस श्रतको, जो अङ्ग उपांग प्रकीर्णक प्राभृत परिकर्म सूत्र पूर्वगत चूलिका धर्म कथा आदि रूप है, उसको, सदा पूजता हूं, नमस्कार करता हूं, बंदना करता हूं, (हे श्रुत) मेरे दुःखका नाश हो जाय, कोका क्षय हो जाय, बोधिकी प्राप्ति हो, सुगतिमें गमन हो, सम्यग्दर्शन प्राप्त हो, समाधिमरण मिले, और जिनेंद्र भगवानके गुणोंकी संपत्ति मुझे प्राप्त हो। अथ चारित्रभाक्तिः। अब चारित्रभक्ति कही जाती है । संसारव्यसनाहतिप्रचलिता नित्योदयप्रार्थिनः प्रत्यासन्नविमुक्तयः सुमतयः शांतैनसः प्राणिनः। मोक्षस्यैव कृतं विशालमतुलं सोपानमुच्चैस्तरा मारोहंतु चरित्रमुत्तममिद जैनेंद्रमोजस्विनः॥१॥ जो संसारके भयानक दुःखोंसे घबडा उठे हैं, जो अविनाशी सुखकी प्राप्ति चाहते हैं, जिनको बहुत ही थोडे समय बाद मुक्ति मिलनेवाली हैं, जिनकी श्रेष्ठ बुद्धि है, जिनके पाप शांत हो गये हैं, ऐसे उत्तम तेजस्वी प्राणी उस जिनेंद्र भगवानसे उपदिष्ट चारित्रको धारण करते हैं, जो चारित्र पोक्ष महलमें पहुंचनेके लिये अनुपम विशल सोपानस्वरुप है ॥१॥ तिलोए सव्वजीवाणं हियं धम्मोवदेसणं । वड्ढमाणं महावीर बंदित्ता सव्ववेदिनं ॥२॥ तीनो लोकोंमें सब जीवोंका हितकारक एक सर्वज्ञ महावीर भगवान द्वारा उपदिष्ट धर्म ही है ॥२॥ e Jain Education For Private & Personal Use Only Pamelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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