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________________ प्रतिष्ठा 33%9 5 %AA%DOHORENORREGISAR ज्ञानी मुनिगणोंने धारण किया है, जो मोक्षका प्रधान द्वार है, जिसके पठन पाठन से व्रत चरणरूप फल मिलता है, जो ज्ञेय-पदार्थोंको प्रकाशित करनेमें दीपकके समान है, उस समस्त संसारके सारभूत श्रुत को मैं भक्तिपूर्वक बंदन करता हूं ॥१॥ जिनेंद्रवक्तप्रविनिर्गतं वचो यतींद्रभूतिप्रमुखंगणाधिपः । श्रुतं धृतं तैश्च पुनःप्रकाशितं द्विषट्प्रकारं प्रणमाम्यहं श्रुतं ॥२॥ जिस श्रुतका प्रादुर्भाव श्रीजिनेंद्र भगवान की दिव्य ध्वनिसे हुआ, और उसके बाद श्रीमद् इन्द्रभूति प्रभृति गणधर देवोंने जिसको सुनकर प्रकाशित किया उस बारह प्रकारके श्रतको मैं प्रणाम करता हूं ॥२॥ कोटीशतं द्वादश चैव कोट्यो लक्षाण्यशीतिस्त्र्यधिकानि चैव । पंचाशदष्टौ च सहस्रसंख्यमेतच्छ्रतं पंच पदं नमामि॥३॥ जिस श्रुतमें एकसौ बारह करोड तिरासी लाख अठ्ठावन हजार पांच १२८३५८००५ पद हैं उसको मैं नमस्कार करता हूं ॥३॥ अंगवाह्यश्रुतोद्भूतान्यक्षराण्यक्षराम्नये। पंचसप्तैकमष्टौ च दशाशीतिं समर्चये ॥ ४॥ पूर्वश्लोक में पदसंख्या जो कही गई है वह अङ्गमविष्ट श्रुत की है और इस श्लोकसे अङ्गवाहयकी संख्या बतलायी जाती है-में अद्भवाय | 6 श्रुतके आठ करोड एक लाख आठ हजार एकसौ पचहत्तर ८०१०८१७५ पदोंको पूजता हूँ॥४॥ . अरहतभासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथिय सम्म। पणमामि भत्तिजुत्तो सुदणाणमहोवहिं सिरसा ॥ ५॥ जिसको अरहंत भगवानने उपदेशा, गणधर देवोंने जिसका सम्यक्तया ग्रंथन किया, उस श्रुतज्ञानरूपी महोदधि को मस्तक नपाकर भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ॥५॥ . इच्छामि भंते सुदभाच काओसग्गो को तस्सालोचेओ अंगोबंगपइण्णयपाहुउपरियम्मसुचपढ- हैं। Jain Education For Private & Personal Use Only helibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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