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________________ प्रतिष्ठा % ECRETECEMANTICLEARCH भूमि शयन, अस्नान (स्नान नहीं करना) विवस्त्रता, (नग्न रहना) लोच, (केशलोच) स्थितिभोजन (खडे होकर भोजन लेना) अदन्तधावन (दांतोन न करना) एकभुक्ति (एकवार आहार लेना) ये मुनियोंके अट्ठाईस मूल गुण हैं। उत्तम क्षमादि दश धर्म, मनोगुप्ति आदि तीन गुप्ति, समस्त प्रकारकेशील और वाईस परिसहका जय ये उत्तर गुण हैं इसी प्रकार अन्य भी मूल गुणों के सहायक उत्तर गुण हैं॥६ ॥ जइ रागेण दोसेण मोहेण णदरेण वा। वंदित्ता सव्वसिद्धाण सजुहा सामुमुक्खुण ॥ १०॥(?) संजदेण मए सम्म सव्वसंजमभाविणा। सव्वसंजमसिद्धीओ लब्भदे मुत्तिजं सुहं ॥ ११ ॥ समस्त प्रकारके संयम पालन करनेवाले तपस्वोको समस्त प्रकारको संयमकी सिद्धि होती है और मुक्तिसुख प्राप्त होता है। ११॥ धम्मो मंगलमुक्किट्ठं अहिंसासंजमो तो। देवा वि तस्स पणमंति जस्स धम्मे सया मणो ॥ १२॥ धम ही उत्कृष्ट मंगल है, और वह अहिंसामय संयम तप है जिसका उक्त धर्म में सदा मन लगा रहता है उसको देव भो नमस्कार | करते हैं ॥१२॥ इच्छामि भंते चारिचभत्ति काओसग्गो को तस्सालोचेओ सम्मणाणजोयस्स सम्मत्नाहिटियस्त सवपहाणस्स णिबाणमग्गस्स संजमस्त कमाणेजरफलस्त खमाहरस्त पंचमहन्वयसंपण्णस तिगृति| गुचस्स पंचसमिदिजुत्तस्स गाणज्झाणसाहणस्स समयाइपवेसयस सम्प्रचरिचस्स सदापिचकालं अंचेमि पूजेमि बंदामि णमंसामि दुक्खखओ कम्मखमओ बोहिलाओ सुगहगमणं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं॥ Jain Education rational For Private & Personal Use Only D elibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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