SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ PA । भतिष्ठा RBACAC-%AE अथ नांदीविधान। अथ नांदी विधान कहिये है अथोपनीतेऽध्वरसंनिवेशस्थले समागत्य पुरंध्रिगानैः । वादिननादैः परिपूरिताशं नांदीविधानं पुरतो विधत्ताम् ॥५१॥ अब पवित्र रूप यज्ञकी संस्थान भूमिमें महामुदर खोनका गोतन करि तथा वादिननका शब्द करि सर्व दिशा व्याप्त होते संते श्रीजिना नांदीविधान जो है ताहि करना योग्य है ॥२५॥ शाल्यक्षतैः कुंकुमकर्दमाक्तैविधाय नंद्याव्रतमर्जितांशे। वेद्यां कृतायं मणिदर्पणस्रग्वस्त्रावृतं सत्कलशं निवेश्येत् ॥ ५२ ॥ प्रथम वेदीमें देवांश भागमें शालिके अक्षत केशरि चंदन करि लिप्त ऐसेनिकरि नंद्यावत नामक सांथिया रचि अरु वहां अघ देय पणि-रत्न दर्पण माला वस्त्रनिकरि समीचीन कलशकू निवेशन करै ॥२५२ ॥ रक्तवस्त्रफलदामभूषिते वेदिकांतरितभूतले शुचौ। स्वस्तिके मणिसुवर्णशालिजैर्निर्मिते कुलबधूभिरादरात् ॥ ५३ ॥ कहां निवेशन करे सो कह हैं-रक्तवर्ण वस्त्र अरु फूल मालानिकरि भूषित अरु शुद्ध वेदिकाके मध्य भूतलमें मणि रत्न शालि सुवर्ण पुष्पनि करि कुलवंती स्त्रीनि करि आदर पूर्व क रचित ऐसा स्वस्तिकमें स्थापन करे ॥२५३ ॥ इंद्रमध्वरकृतं सुचंदनैः कुंकुमाक्ततिलजैः सतीर्थगैः। अंबुभिः कलशधारिधारया स्नापयेदवभृतार्थमंजसा ॥ ५४॥ अरु तहां चन्दन कुंकुम करि व्याप्त तिल करि युक्त तीर्थके जल करि कलश धारा करियज्ञका कार्यमें इंद्र संज्ञक पुरुषने अर यज्ञकर्ता यजमानने अग्रिम क्रियाविशेष वास्तै स्नान करावे ॥२५४ ॥ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy