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________________ प्रतिष्ठा AAKALREEKRECRORECASIRSAGALCREAM तदग्रवेदी चतुरस्रकाष्ठकरप्रमाणा सुकुमारिकाभिः । सुवासिनीभिश्च सुलिंप्यमाना सन्मृत्स्नया चित्रविचित्रशोभा ॥ २३ ॥ अर ताका अग्रभागमें चौकोर आठ हाथ प्रमाण चोतराके आकार वेदो है सो सुन्दर कुमारिका तथा सुवासिनी स्त्रियां करि शुद्ध मृत्तिका करि लिपी अरु चित्र विचित्र शोभावती करना ॥ २२३ ॥ अपक्वपक्वेष्टिकसंनिवेशा दृढा सिता दर्पणवत्समाना। अंतःस्थितैः षोडशभिर्लसद्भिः स्तंभैर्वितानोद्गथितैःप्रयुक्ता ॥२४॥ सो वेदी पकी तथा कच्ची इटनि करि रची अरु गाढी अरु उज्वल अरु दर्पण सपान सम, ऐसी होय । अर ताके भीतर सोलह सुदर चंदवाका आधार भूत ऐसे काठके स्तंभनि करि युक्त होय ॥ २२४ ।। वेद्याः कोणे हस्तिहस्तोच्चवेदस्तंभान् दद्याद बनिदिक्तः सचूडान् । प्रादक्षिण्यात् पंचमांशं तु भूमौ दद्यादेवं षोडशस्तंभसंस्था ॥ २५ ॥ अरु ता वेदीका कोणमें हाथीकी मूढि समान ऊंचे ऐसे चार स्तंभ तो अग्निदिशा देणा, च डा ऊपर कला है तिनि संयुक्त होय अरू प्रदक्षिणाकी रीतिते देणा, अरु तहां स्तंभका पाचवां हिस्सा तो भूमिमें गाडना ऐसे षाडश स्तभिनिको स्थिति कहो ॥ २२५॥ - - अथ स्थंडिलशुद्धिप्रकारः ।। अब इहां वेदीकी रचनाकरि ऊपरि मंडल रचना करै सो ऐसे है मध्ये स्थंडिलमुन्नतं शुचिसितस्फारार्ध्यवासोभृतं, यागोपस्कृतमंडलार्थमभितो वाटीभिरावेष्टितं । द्वारैर्दिक्षु विराजितं ध्वजपताकाभिस्ततं सर्वतो राजच्छतसुचामरादिविभवं प्रेक्षावतां प्रीतिदं ॥२६॥ वेदीका मध्यमें चोंतरो किंचित ऊंचो सुफेद शुद्ध विस्तीर्ण वस्त्र करि ढको, सो यज्ञ का उपकारक मंडल निमित्त चोतरफ वाडिकरि वेष्टित Jain Education in anal For Private & Personal Use Only library.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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