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________________ प्रतिष्ठा COLOCAREERICAN आचार्यशक्रस्थितिरस्य पृष्ठे स्नानासनादीनि तदंतिके च । तथोत्तरस्यां जननोत्सवादि दीक्षावनं ज्ञानविभूतिसद्म ॥१८॥ ___ अरु याके पृष्ठ भागमें आचार्य अर इंद्रकी स्थिति करनी, अरु समीप हो स्नान सामयिक आदिको सभा अर ताके उत्तरमें जन्मोत्सवसूचक सुमेरु पर्वत रचना अरु ताके अग्र दीक्षावन अरु समवसरण स्थान करना ॥२१८॥ नृत्यालयादिः स्वकयोग्यभूमौ विकल्पनीयं परिणाहभागे। गर्भालयात्पश्चिमदिग्विभागे सामग्रिकाकल्पनमग्रभागे ॥ १६ ॥ संप्रेष्यकानामपि नृत्यगीतमतांडवं पुण्यविधानदक्षं। मार्गाविदूरा किल दानशाला सभेषजागारमपि कियावत् ॥ २०॥ अरु अपनी योग्य दिशामें न त्य तांडव वादित्र आदिका स्थान बड़ा विशाल स्थानमें करना। अब इनका विधान कहैं हैं कि गर्भगृहका पश्चिमपार्श्व में सामग्रीकी कल्पना अरु अग्रभागमें प्रेक्षक जनोंका स्थान अरु न त्य गोत तांडव भी सन्मुख करना, अरु तहां पुण्यका विधानमें निपुण ऐसी दानशाला मार्ग के समीप किंचित दूर करनी। अर औषधगृह भी क्रियासंयुक्त दानशालाके समीप ही योग्य है॥२१-२२० । निस्तारके धर्मनिरूपणं च पृच्छाश्रुतोद्घोषणवाचनादिः।। गोत्सवे मातृजनोपवेशः पृथग नपागारनिवेशनं च ॥ २१॥ अरु निस्तारक जो प्रश्नसभा तिसमें धर्म चर्चा अरु धर्म प्रश्न अर शास्त्रको पठन श्रवण करना, अरू गर्भ कल्याणगृहमें मातृजनोंका निवाश | होय अरु भिन्न ही राजाका स्थानमें मंडप करे ॥२१॥ एवं विधिज्ञस्तु यथानुरूपं देशोचितं संविदधीत युक्त्या। गर्भालये स्थापनमीश्वराणां वेदीत्रिभूव॑विशालमध्या ॥२२॥ या प्रकार विधिने जाननहारो यथायोग्य देशकालोचित रचना युक्तिपूर्वक कर। अर जो गर्भगृह है उसमें प्रतिबिंबनका स्थापन होय अरू वहां वेदी तीन कटिनीकी उर्ध्व-मध्य-अधोरूप विशाल कर ॥ २२२ ॥ en%AE%%ARTOCOLOGIN C HEDCASS R SHASHREG www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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