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________________ प्रतिष्ठा -AUSPICA4%%E5-1 अथ प्रतिष्ठामहोद्योगः। ऐसे मुहत काड, अब प्रतिष्ठाको उत्तम उद्योग कहिये है इत्थं मुहूर्त पारिशोध्य सम्यक् राजाज्ञया संघनिमलणार्थ । विधानकृत्यस्फुटलेखनांका प्रेष्या पुरः पत्रावनीतरज्जूः ।। २०३ ।। प्रतिष्ठाकारक प्रथम ऐसे मुहुर्तका शोधन करि राजाको आज्ञा लेय सकलसंघ ज्यो मुनि अजिका श्रावक श्राविका समूहकू नियंत्रणायें जिस जिस विधान नियुक्त दिनमें होय उसकी स्फुटता लेखनपूर्वक पत्ररूप विनयपत्रिका-रूप रज्जू प्रेषित करे। रज्जूका कहनेकरि जैसे दोरोसे | खंच लीजिये है तैसे विनयपत्रिका संघकू खेंचे है ॥२०३ ॥ अादिष्टिनं सदसि पूज्य विचार्य कार्य मात्सर्यसंशयितनिस्त्रपवाक्यहीनं । पलं लतांतमलयादिभिरर्च्य दूरादामंत्रयेद् गुणवतो बहुमानपूर्वं ॥ २०४॥ वह कर्ता सभामें आदिष्टो जो आचार्यनै पूजि अरु कार्य. विचारि मत्सरता संशयता निर्लज्जता वाक्यहीन पत्रने पुष्प चंदनादिककरि पूजि | दादरवर्ती गुणवाननै बहुमानपूर्वक आमंत्रित करै॥२०४॥ सहायान् ब्राह्मण्ये विधिवदतिथीन् कल्पनिरतान् मरुत्वंतं संतं प्रकृतिविरतं कोशनिरतं । परं चान्यं सने सदसि विनियुज्याद्यजनभूद् धृतौदार्याशंसुः प्रथमपठितार्हच्छुतनुतिः ॥२०५॥ धारण किया है उदारता अरु प्रशंसा जिननें ऐसा यज्ञका कर्ता प्रथम अहं त अरु शास्त्रका नमन करि विधिपूर्वक यनमें गुरुजनक कल्पमें नियुक्त करि उनकू सहाय मानि अपनी प्रकृति जाननेवाला ऐसा योग्य इन्द्रने तथा कोषाध्यक्षने तथा अन्यने अन्यकार्यमें प्रतिष्ठा-विधानमें नियोजित करै ॥२०॥ गुरुं नत्वा पृच्छेद यजनसमनीतांबुधितटं परिप्राप्तुंकामो मुनिवर ! निमित्तानि कथय । तदुद्देशे सम्यकप्रणिधिनिहतात्मप्रतिभया स चाप्यालोकेत श्रितविजनदेशोपवसनः ॥ २०६ ॥ PUCCE%E0%A-NCREASEARC-SOMeaWAR - -1-%A5 Jain Education For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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