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प्रतिष्ठा
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वाः सर्वेऽसद्ग्रहास्सूर्यबेधो राशिद्रेष्काणक्षकांशोऽपि वयः॥ १८॥ तथा क्रूर आसन्न दूषित उत्पात लुता विद्धदुष्ट सन्न उपपात वर्जित है अथवा राशि द्रेष्काण नक्षत्र संबंधी स्य वेध भी वजित है ॥१६॥
लग्नात्तृतीये शिवषट्कदेशे भौमो यमश्चापि शनैश्चरोऽपि ।
शुभाय सूर्यो दशमोऽपि सौम्यो मुक्त्वाष्टमं द्वादशमं शुभाय ॥ ६ ॥ अरु लग्नस तीसरे स्थान तथा षटक स्थान ग्यारेमे स्थान तथा भोम राहु शनेश्चर होय तो शुभ है। अरु दशपे सूर्य श्रेष्ठ है। परन्तु चंद्रमा || आठपे तथा बारमे नहीं होय तो शुभके अर्थि है ॥ १६ ॥
षष्ठाष्टमं द्वादशकं तृतीयं त्यक्त्वा गुरुः स्याद् शुभदो विधिज्ञः।
शुक्रो रसाष्टांत्यमुनिस्थितोऽसौ न स्याच्छुभोऽन्यत्र शुभाय बोध्यः ॥ २०० ॥ अरु छठे पाठये तथा बारमे तीसरे नहीं होय तो गुरु श्रेष्ठ है । पंचममें गुरु श्रेष्ठ है। अरु छ? पाठये वारपे शुक्र शुभ नहीं, अन्यत्र शुभ होय है ॥२०॥
शशी त्रिरुद्रद्वितये प्रशस्तो यदास्तदौर्बल्यमुपागतो न ।
ताराबलं चात्र विधौ विधेयं त्रिसप्तपंचम्यपराः शुभाय ॥ २०१॥ अरु चंद्रमा तीसरे दूसरे ग्यारेमे श्रेष्ठ होय है। जो होनवली तथा अस्त न हाय अथवा तारा बल ही इस विधि विधान करनो सो तीसरो पंचमी सप्तमीतें अन्य होय तो शुभ होय ॥२०१॥
कृष्णे च ताराबलमत्र शुक्ले सुधांशुवीर्य नियतं मुनींद्रैः।
जीवेंदुसूर्योऽस्य बलं प्रधानमन्यद्ग्रहाणामपि निर्बलत्वे ॥ २० ॥ अरु कृष्णपक्षमें ताराबल प्रशस्त है। अरु शुक्लपक्षमें चंद्रमाको वन श्रेष्ठ है। पर मुनोंदने ऐसा कहा है कि अन्य ग्रह निवन भी होय तथापि वृहस्पति चंद्र गुरु सूर्य का बल प्रधान निश्चय कियो है ॥ २०२॥ ..
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