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________________ प्रतिष्ठा CASHNESSPATROCIRECEMBECECUR सषट्कपंचाशसमांगुलं तु पुष्टोरसः स्यात्परिणाहदेशः । स्तनांतरं तालवितानभाजि युग्मांतरं स्यात्स्तनचूचुकं वै॥ ७० ॥ अरु वक्षस्थलकी पीठकी चौडाई छप्पन अगुल होय, अरु स्तनका अन्तर बारह अंगुल होय, दोन्यू अन्तर कुचनिका अग्रभागताइ होष सो योग्य है॥१७॥ तस्याधरस्तात्तु वितस्तिमालं नाभिर्यमावर्त्तमनोहरा च । मुखांगुलं रंध्रमथो तदीयं तस्याप्यधोऽष्टांगुलमंतरं स्यात् ॥ १७१॥ मेदस्य गुप्ताग्रिमभागकस्य कटिर्विशालाष्टदशांगुला स्यात् । हस्तद्वयं तत्परिधिः प्रशस्यः स्फिग् स्यान्मदांगुल्यवधिस्त्रिपर्णा ॥ १७२ ॥ सद्व्यंगुलं लिंगवितानमस्य मूले च मध्येऽगुलमेकमेव । व्यासाच्च नाहस्त्रिगुणस्तथामू त्वक् (१) प्रायसापौत्रकृतिविधेया ॥ १७३ ॥ अरु ता स्तनान्तरके नीचे एक वितस्तिमात्र दक्षिणावर्त नाभि होय अरु वा नाभिका मुख एकांगुल होय अरु ता नाभिके नीचे आठ अंगुल अन्तर छोडि लिंग है, अर वा लिंगका अग्रभाग गुप्त होय अर दोन्याके वीच अर्थात नाभि अर लिंगका पार्थ में कटि होय सो अठारह अंगुल प्रमाण होय अरु ता कटिकी परिधि दोय हाथ प्रमाण होय अर पेडू लिंग ऊपरि है सो आठ अंगुल होय तामें तीन रेखाका चिह्न होय, अरु किंचिदधिक दोय अंगुल लिंगका विस्तार होय अरु मूल अथवा मध्यमें एक अंगुल मोटा अरु अंतमें किंचिद् अधिक एकांगुल होय अर विस्तारसे परिधि तीनि गुणी होय है अर पोताका आकार आमकी गुठली समान होय ॥ १७१-१७३ ॥ कुकुंदरौ वाऽपि नितंबदेशौ समांसलग्रंथिकया वितानौ । स्कंधस्य पायोः रसबनिसंख्यं स्यादन्तरं पृष्ठविभागदेशे ॥ १७ ॥ वितस्तियुग्मायतमूरुयुग्मं विस्तीर्णतेकादशभिः प्रनुन्ना। AMERICHNOGRASSARA Jain Education than nonal For Private & Personal use only Virmalinelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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