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________________ 4 . C प्रतिष्ठा o +-3-tiews अनामिका मध्यसुपर्वणार्धा प्रदेशनी स्वायततुल्यभागा। कनीयसी पर्वलघुस्तथाऽत्र पंचांगुलं मूलमधो विशालं ॥ ६५ ॥ मध्यांगुलित अर्ध पर्व हीन अनापिका अरु प्रदेशनी अंगुलि अपनी मध्यमासे किंचिन्यून भागवारी है अरु कनिष्ठा अंगुलि एक पर्व हीन है अरु हस्तका मूलभाग अर अधोभाग पांच अंगुल है ॥ १६५ ॥ अर्धांगुला मध्यमतो विधेया हीना सुतर्जन्यपि योग्यदेशा । अंगुष्ठयुग्मं चतुरंगुलं स्यादेकांगुलं विस्तृतमन साधि ॥ ६६ ॥ द्विपर्वणांगुष्ठधृतिस्तथासां त्रिपवणा पुष्टियुता नखानां । पर्वार्धमानेन तलं करस्य सप्तांशकं पंच सुविस्तृतं च ॥६७ ॥ दृढं च बाहुद्वयमुन्नतांश निःसंधिहस्तिप्रकराकृतिः स्यात् । लंबौ तथा जानुगतौ सुवीरताख्यापकौ शोभनलक्ष्मभाजौ ॥ ६८ ॥ न चातिनिम्नौ मृदुलौ समौ च निश्छिद्रकौ मांसलरक्तवर्णो। उरो वितस्तिद्वयविस्तृतं स्याच्छीवत्ससंभासि सुचूचुकं च ॥ ६६ ॥ अरु तर्जनी मध्यमातें आध अंगुल होन है। अरु अंगुष्ठ द्वयही समान च्यारि अंगुल विस्तृत अर एक अंगुल मोटा किंचिद धिक, अरु अंगुष्ठ में दोय ही पर्वको धारणा ह अरु ये सई अंगुली तीन तीन पवेवाली अर नखनको पुष्टिने देनेवारी अरु अर्ध पर्व प्रमाण हस्तका तल, अरु सात अंश लंबा पांच अंश चौडा, अरु बाहुद्वय ऊंचा कांधायुक्त अरु गाढा होय अरु संधिरहित हाथीका डिके आकार होय सो प्रशंसा योग्य है तथा लंबे गोड़ा ताई अपनी सुन्दर वीरपणके विख्यात करणहारे सुन्दर चियुक्त होय अर हस्त दोन्यू समान होय अरु नहीं अत्यंत उंडा अर्थात् किंचित् ऊंडा होय अरु कोमल होय, अंगुलीका छिद्ररहित होय अरु मांसल होय अर्थात् पुष्ट होय अरु रक्तवणं, होय | सो योग्य है। अरु वक्षस्थल दोन वितस्ति होय, अर्थात् चौईस अंगुलेका होय अरु श्रीक्षका चिहकरि शोभायमान अरु सुन्दर कुचकरि | संयुक्त होय ॥ १६६-१६६॥ o nal SANSAREk-5-%eo M For Private & Personal Use Only Jain Educati elibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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