SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ % % % प्रमाण समित्तिकदमें या AE % SAEKARNAKANElectSARASHROUP कर्णों च षड्भागयुतौ प्रलंबो वेदांगुलव्यासयुतौ तदंतः। छिद्रे तु नाली यवनालिकामा त्व(गुलं चांतरमुच्यतेऽथ ॥ ६॥ श्रोत्रस्य नेत्रस्य च वेदमंतरमष्टादशांशा द्वयकर्णभित्तेः। पाश्चात्यभागे तु चतुर्दशांशाः शल्याक्षिभागा परिधिस्तुकस्य ॥ ६१॥ अरु कान छह भाग प्रयाणा लंबाई अरु दोय भाग चौडे अरु तिनके मध्य छिद्रमें यवनालिका समान नाली अगुल चौडी, तथा कण अरू | है। नेत्र इनके च्यारि अंगुल अन्तर है अरु दोन्यू कर्णसमेत वा भित्तिके अर्थात् गंडस्थल के अठारह भागको अन्तर अरू पछाड़ी की तरफ चौदह भाग है अरु पस्तककी परिधि तेईस भाग प्रमाण है ॥ १६०-१६१॥ तथोर्श्वभागे रविभागमाला त्र्यंशांगुलाः पंच च कूपरस्य । तषोडशांशाः परिधेस्त तस्य तत्रापि हानिर्मणिबंधमात्रा ॥१६॥ तथा उपरि मस्तककी परिधि तालु रंध्र ताई वारा भाग अरु तीन अंगुल है। अरु कपालकी पांचभाग प्रमाणकी षोडशभाग परिधि है। परन्तु मणिबंध क्रमकरि हानि भी होती है ( इहां मणिबंधका अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ)॥१२॥ पंचागुलं वा त्रिकभागकोनं मध्यं प्रबाहोर्विततेस्तु तस्य । विशालता स्याद् युगचंद्रभागा स्कंधं वृषस्कंधमिवाप्तशोभं ॥ १६३ ॥ अरु बाहुका मध्य विस्तार तीन भाग ऊन पंचागुल है अरु विशालता बारा भाग मात्र है और स्कंध है सो बैलका यूहा समान उन्नत शोभायमान होय ॥ १३॥ तुर्यागुला स्यान्मणिबंधको: वैशालमस्यास्तु चतुर्दशांश । मध्यांगुले दशकांतरं च मध्यांगुलिः पंचमिता करस्य ॥ ६४॥ अरु मणिबंध न्यो पोछ्यो (पोंचा) ताको विस्तार च्यारि अंगुल है लंबाई कूणी ताई चौदह भाग प्रमाण है। मध्यागुलित द्वादश भाग । प्रमाण अन्तर है अरु मध्यांगुलि पंच अंगुल प्रमाण है ॥ १६४॥ % OME C PRIMERO Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only THElibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy