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________________ PURCHA%A RRRRRECE%BC मीनमेषवृषराश्यवस्थिते ग्रीष्मभासिशिवदिग्यमाननं । युग्मकेशरिकुलीरगेऽनिले कन्यकालितुलगेऽश्रये भवेत् ॥ १४३ ॥ कार्मुके च मकरे घटे रवावग्निदिश्युपगतं विदुर्बुधाः । निश्चयेन तदपास्य पृष्ठतः संखनेन्नयविशारदो जनः ॥ १४४ ॥ राहु चक्रका मुखका निवारणार्थ परिभ्रपण राहूका कहें हैं—यीन पेष अरु वृष राशिगत मूर्य संक्रमण होते ईशान कोणमें राहु मुख है। अरु मिथुन सिंह कर्कट राशिगत मूर्य में वायु दिशामें तथा कन्या वृश्चिक तुलामें नैऋत्यदिशामें, अर धन मकर कुंभका सूर्यमें अग्निकोणमें राहु मुख है। याते नयमें प्रवीण पुरुष इस मुखकू छोडि पृष्ठ भागमें खनन करे॥१४३-४४ ॥ अधोमुखभैविर्दधीत खातं शिलास्तथैवोर्ध्वमुखैश्च पढे । तिर्यग्मुखैरकपाटदानं गृहप्रवेशो मृदुभिर्भुवःः ॥ १४५ ॥ अर नक्षत्रनिमें अधोमुख संज्ञक नक्षत्रमें अर्थात् मूल अश्लषा विशाखा, कृत्तिका, बुध, पूर्वा भाद्र, पूर्वाषाढ़, पूर्वा फाल्गुनी, भरणी, मघा, भौमवार ऐ अधोमुख नक्षत्रमें खनन करै अर ऊर्ध्वमुख संज्ञक अर्थात् आर्द्रा, पुष्या, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरात्रय, रोहिणी, सूर्य बार इनमें शिला स्थापन अरु पट्टीन गिराना करै। तथा तिर्यम मुख अर्थात् अनुराधा, हस्त, स्वाति, पुनर्वमू, ज्येष्ठा, अधिनी इनमें द्वारके कपाटदान करना अरु मृदु अरु ध्रुव नक्षत्रनिमें अर्थात् उत्तरा त्रय रोहिणी सूर्य वार इनमें गृह प्रवेश करना ॥१५॥ मार्गादिषु विचैत्रेषु मासेषूत्तरसंक्रमे। व्यतीपातादियोगेन शुभेऽनि प्रारभत तत् ॥ १४६ ॥ मार्गशिर आदि पंच महीनेमें परन्तु चैत्रविना अरु उत्तरायण मूर्य में व्यतिपातादि योगरहित शुभदिनमें जिनालयको प्रारंभ करै ॥१४॥ पुष्योत्तरालयमृगश्रवणाश्विनीषु चित्राकया हि वसुपाशिविशाखिकासु। आर्द्रापुनर्वसुकरेष्वपि भेषु शस्तं जीवज्ञशुकूदिवसेषु जिनेषु सद्म ॥ १४७ ॥ GRANGOLIcces M CN Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only delibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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