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________________ प्रतिष्ठ -- बुष्य, उत्तरात्रय, मृगशिर, श्रवण, अश्विनी, चित्रा, पुनर्वसु, विशाखा, आर्द्रा, हस्त इनमें, अरु वृहस्पति, बुध, शुक्रवारमें जिन मंदिर त प्रारंभ करना योग्य है ॥१७॥ जीवेन चंद्रहरिसर्पजलध्रुवाणि पुष्यं प्रशस्तमथ तक्षवसुद्विनाथाः । इस्रार्दिका शतपदाश्च सुभार्गवेन वाहोत्तराकरकदाश्च बुधेन योगात् ॥ १४८ ॥ वृहस्पतिवारमें मृगशिर, अनुराधा, अश्लेषा, पूर्वाषाढ़ अरु ध्रुवसंज्ञक प्रशस्त है, अरु पुष्य भी प्रशस्त है । अरु चित्रा, धनिष्ठा, विशाखा, टू अश्विनी, आर्द्रा, शतभिषा, शुक्रवारमें श्रेष्ठ है अरु बुधवारमें अश्विनी उत्तरा हस्त रोहिणी श्रेष्ठ है॥१८॥ RSSRHCOURecREERSHARE अथ लग्नशुद्धिः। अब लग्न शुद्धि कहिये हैमीनस्थे तनुगे कवावपि चतुर्थे कर्कगे गीप्पतौ रुद्रम्थे तुलगे शनावथ बलाधिक्ये सुतारायुजि। लग्नायां वरगेषु शुक्रतपनज्ञेष्टामरे केंद्रगेषष्ठेऽर्के विदि सप्तमोऽग्निषु शनौ शस्तोजिनेंद्रालयः ॥१४६ ॥ मीन लग्नमें शुक्र होय अथवा चौथ होय, कक को वृहस्पति होय, अरु म्यारमें तुलाको शनि होय, बलकरि अधिक अरु सुन्दर ताराको IN योग होय अरु लग्न, अरु ग्यारमे अरु दशमे शुक्र सूर्य वृहस्पति होय अथवा केंदमें वृहस्पति होय, अरु छटठे मर्य होय अरु सातये बुध होय, त्रिकोणमें शनि होय तो यामेंसे एक भी योग होय तो जिनेंद्रालय प्रशस्त कहिये है ॥१४६॥ सूर्याधिष्ठितभात् चतुर्भिरुपरिस्थैरष्टभिः कोणगैस्तस्मादग्रिमभाष्टभिस्तत इतै:ह्निसंख्यैरलं । देहल्यामथ तत्पुरःस्थितचतुर्भिभः कृते चकूके लक्ष्मीप्राप्तिरमानवं सुखकरं मृत्युः शिवं च कूमात् ॥ १५०॥ और मूर्य करि आश्रित नक्षत्रत चारि नक्षत्र पर ऊपरिके आठ नक्षत्र कोण स्थित, अर तातें अग्रिप आठ नक्षत्र पाश्च में होय ताके अग्रिम तीन नक्षत्र देहलीमें होय ताके अग्रिम च्यारि नक्षत्र चक्रमें होय तो यह योगमें लक्ष्मीकी प्राप्ति होय अरु शून्य होय अरु सुखकारो होय अरू मृत्यु होय, अरु कल्याण होय येह पांच योगका पांच फल अनुक्रमते जानना ॥१५॥ ACESSANCTERARMA ACThelibrary.org Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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