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________________ पाठ -- - CONSCka%CRECRUCRECEMS आचार्य पूजयेद् भक्त्या यथायोग्योपचारतः ॥ ६१५ ॥ पीछे जिनेंद्रका चरण स्पर्शत पवित्र पुष्पाशिषमालाने ग्रहण करै अर आचार्य ने भक्तिसेती पूजै यथायोग्य उपचारसैं॥१५॥ सर्वे येऽपि समाहूता जिनयज्ञमहोत्सवे । तान्सर्वान् संविसृज्येत भक्तिनम्रशिराः पुनः ॥ ९१६ ॥ अर सर्वजन श्रीयज्ञविधानमें आहूत हैं तिनकू विसर्जन करै अर भक्तिकरि अपना मस्तककूनपावै ॥१६॥ स्वस्ति स्ताज्जिनशासनाय महतां पुण्यात्मनां पंक्तये राज्ञे स्वस्ति चतुर्विधाय वृहते संघाय यज्ञाय च । सधर्माय सधर्मिणेऽस्तु सुकृतांभोवृष्टिरस्तु क्षणं ____ माभूयादशुभेक्षण शुभयुजां भूयात्पुनदर्शनं ।। ९१७ ॥ येह जिनेंद्र मत है याके अर्थि कल्याण होहु पर महान् पुण्याधिकारी जनकी पंक्तिके अथि कल्याण होह, अर देशका प्रतिपालक राजाके । अथि कल्याण होहु अर च्यारि प्रकार मुनि अजिंका श्रावक श्राविकारूप संघके वास्ते कल्याण होहु अर यज्ञके अर्थि अर समोचीन धर्मके है। अर्थि अर साधर्मी जनोंके अर्थि कल्याण होहु अर पुण्यरूप मेघकी दृष्टि होहु अर क्षणमात्र भी अशुभ पदार्थोंका दर्शन मति होहु, शुभका योग|| को पुनः कहिये वारंवार दर्शन होहु ॥ ११७॥ शास्त्रान्नभैषजमभीतिरिति प्रदानं पात्राय सद्बषयुजे नितरां ममास्तु। यस्मिन् क्षणे भवति तत्पुनरतदेव सार्थं स्मरामि न पुनस्तदयोगजातं ।। ९.८॥ अर प्रतिष्ठा करावनेवारा च्यारि प्रकार दान भी निश्चित करें है सो येह है-शास्त्र दान, अन्न दान, औषध दान, अभय दान । येह हा च्यारि प्रकार मुख्य दान है सो समीचीन धर्मका धारी पात्रके अर्थि नित्य मेरे होहु । अर जा क्षणमें येह दान होय तिस ही क्षणमें यह समूह॥ नै मै स्मरण करू हूँ बहुरि इनिका प्रयोग कहिये नहीं होना मात्र नहीं स्मरण करू हूँ॥१८॥ AAEECHAIBAHASRAEKACARROR-NeCitros Jain Educati o nal For Private & Personal Use Only MIbrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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