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प्रतिष्ठा ३०७
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सिद्धप्रतिष्ठा यदि तत्र योगसंरोधनं पूज्यचतुर्घनानि ।
कर्माणि संयोज्य चतुःप्रदीपानुत्तारयेत्तत्र शिवोर्ध्वगंतृन् ॥ ९॥६॥ अर जब सिद्धविच प्रतिष्ठा करनी होय तहां योग निरोधताई पूजाकरि चतुःप्रकार घन घातिकम वेदनीय गोत्र नाम आयु इनका संयोगकरि उतारै अर शिव कहिये मोक्षमें ऊर्ध्वगमन करनेवारे करै अर्थात समानकाल निर्वाण करै ॥१६॥
पंचलघूच्चारणमात्रमयोगपंथानमाशु विनियुंज्यात् ।
तकसमय एव सिद्धत्वं प्राप्य तत्र भासति ॥ २०॥ | अरु पीछे पंच लघु अक्षरका उच्चारणमात्रकाल अयोगमार्गनै नियोगरूपकरि एक समयमें ही सिद्धपणाने प्राप्त होय तहां भासमान होय है॥२०॥
तत्राष्टगुणानां पूजा कार्या सम्यक्त्वमुख्यसुविधीनां ।
अन्यो विधिविधेयस्तावानेवात्र गुरुकुलाद् बुद्ध्या ।। ६२१॥ तहां आठ गुण जो सम्पत्तणाणादि विधिकी पूजा करै, अन्यविधि गुरुत उपदिष्ट होय सो करै ॥२१॥
पूजाकर्मविधूननाय मदवेदेंदुप्रकृत्यस्तकृद्
__ यंत्रे मंडलमालिखेद वसुदलान्वीते पृथक् शासनं । संयोज्यामरनायकान् शिवपदप्राप्तान् यजेत्तद्गुणा
नेवं युक्तिविशारदेन पटुना कार्यो विधि यशः ॥ ९२२॥ __अर अष्ट कर्मनिका छेदन अर्थि एक सौ अडचालीस कर्म प्रकृतिका अस्त करनेवारे यंत्र मंडलमें अष्टकोष्टकयुक्तमें शासन कहिये स्याद्वादवाणीने संयोजनकरिअर सिद्ध परमेष्ठीने यजन करै अर शिवमें प्राप्त जो अनंतगुण तिनमें मुख्य गुणनिने पूजै ऐसे युक्तिमें चतुर प्रवीण |आचार्यने बहु प्रकार विधि करना योग्य है ॥६२२॥
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