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________________ अतिष्ठा २४ अक्षत ऐसाकि-पोतीका पुज सपान, राजतंदुल चंद्रमाको किरण सपान उज्ज्वल अर अखंडित अर तीन वार प्रक्षालित किये ऐसे निर्मल बहुत पुजनिकरि जिनेंद्रका अर्चन करै॥६॥ सुवासिनीहस्तसमागतानि पुष्पाणि गंधप्रकराणि यद्वा । सुवणरुक्मोपचितानि युक्त्या संरोपितानीष्टमनोहराणि ॥ ९७ ॥ ला जितेंद्रार्चनमें सौभाग्यवंती स्त्रीका हायसे आये सुगधका समूहसै भरा अथवा सुवर्ण अर चांदोके उपचार करि कीये अर पूर्वाचार्यनिकी युक्ति करि आरोपित किये अर्थात् केशर करि रंगे अर इष्ट और मनोहर पुष्प योग्य होय हैं ॥१७॥ पीयूषपिंडानि सिताघृतान्नसन्मोदका नित्यदिनोद्भवाश्च । हृन्नललावण्यविधानदक्षा अनेकधा यज्ञविधौ प्रशस्ताः ॥ १८ ॥ नैवेद्य ऐसे योग्य हैं कि-सकरा, अर घत अर अन्न इनका योगते उत्पन्न मोदकादि नित्य किये अर दिनमें उत्पन्न किये, अर हृदय नेत्रके सोदयबधावनेवारे अनेक प्रकारके ऐसे जिन द्रका यज्ञमैं प्रशंसा योग्य कहे हैं॥८॥ कर्पूररत्नमणिदीपकमालयार्चा योग्या जिनेंद्रचरणस्य निरामया च । पात्र विधत्य वरमंगलवाचनेन, स्वारार्तिकं विधिवदर्जयतीह पुण्यम् ॥ ६ ॥ और घ तका अर रत्नमणिकी दीपकका समूह करि जिन द्रका चरण को निर्दोषरूप अर्चाके योग्य हैं । इसकू सुन्दर मंगलका पठन करि पात्रमें धरि आरती है सो पुण्यांकुरने विधिसंयुक्त पैदा करै है॥६॥ अगुरुचंदनसोमतरूद्भवत्प्रचुरधूपगणेन सुगंधिना । दहनपात्रगतेन जिनार्चनं कुरुत भो त्रिदशालयसौख्यदं ॥१०॥ ___ अगर चंदन कपूर आदि सुगंध वृक्षनित उत्पन्न भया प्रचुर धूप समूह करि सुगंधवान् ऐसा करि अरु अग्निपात्रमें प्राप्त करि भो धन्य | Sil पुरुष हो ! स्वर्ग के सुखदेनेवाला जिन द्रका पूजन करो॥१०॥ CARSANSKRECEMERCEX - Jain Education S onal For Private & Personal Use Only relibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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