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________________ प्रतिष्ठा २८२ kOG - ज्योतिः केवलनामचक्रमवतो ध्यानावतानप्रभो ___ोऽयं तुर्यविशंशनक्षणमहः कोप्येष जीयात्पुनः ॥ ८६०॥ तीन लोकने अभयको देनेवारौ अर त्रिकालमाप्त समस्त पदार्थ अर पर्याय तिनका अनंतानंत विकल्प तिनकू प्रगट करनेवारो अर संसारकसे उत्तीर्ण ऐसा केवल नाम ज्योतिने आक्रमण करतो अर ध्यानावस्थित प्रभूको अनिर्वचनीय चौथा कल्याणकी प्राप्तिको उत्सव वारंवार जयवते रहो॥१०॥ ओं ह्रीं नमोऽईते भगवते द्वितीयशुक्थ्यानोपांत्यसमयमाप्तायाम्। ओं ह्रीं अहत भगवानके अवि नमस्कार होहु। दूसरा शुक्लध्यानका उपांत्य समय प्राप्तके अर्थि अर्घ देना। __ इति अधिवासनां निष्ठाप्य-सर्वान् जनानपसृत्य दिगंबरत्वावगत आचार्यः 'ओं नमः सिद्ध भ्यः' इति मंत्रमुच्चारयन् भृगारधारा विष्वग् निपात्य डामरादि द्रोपद्रवशांत्यै सिद्धचक्रयंत्राभ्यएँ संनिधाय प्रथमतः स्वस्त्ययनं पठेत । ऐसें अधिवासनाविधिने निष्ठापनकरि 'नों नमः सिद्ध भ्यः' ऐसा सिद्ध परमेष्ठोको स्परणकरि मंत्रने उच्चारण करतो झारीत जलधाराने चौतरफ क्षेपि तुद्रोपद्रवकी शांतिके अथिं सिद्धचक्र मंत्रकू समीप राखि प्रथम स्वस्तिविधान पढे। सो ऐसातथाहि- स्वस्तिश्रीऋषभो देवोऽजितः स्वस्त्यस्तु संभवः। अभिनंदननामा च स्वस्ति श्रीसुमतिः प्रभुः ॥८६१ ॥ पद्मप्रभः स्वस्ति देवः सुपार्श्वः स्वस्ति जायतां । चंद्रप्रभः स्वस्ति नोऽस्तु पुष्पदंतश्च शीतलः ॥८६२॥ श्रेयान् स्वस्ति वासुपूज्यो विमलः स्वस्त्यनंतजित् । धर्मो जिनः सदा स्वस्ति शांतिः कुंथुश्च स्वस्त्यरः ॥ ८६३ ॥ मल्लिनाथः स्वस्ति मुनिसुव्रतः स्वस्ति वै नमिः । REPARASANNARENA- MARA-%ance RECRUGREFRES - - २८३ Jain Educat i onal For Private & Personal Use Only brary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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