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________________ प्रतिष्ठा २८३ BREASSADORA.MAHARASHTRA नेमिर्जिनः स्वस्ति पार्यो वीरः स्वस्ति च जायतां ॥८६४ ॥ भूतभाविजिनाः सर्वे स्वस्ति श्रीसिद्धनायकाः। श्राचार्यः स्वस्त्युपाध्यायः साधवः स्वस्ति संतु नः ॥ ८६५ ॥ ऋषभदेव स्वामी कल्याणरूप हो, अजितनाथ कल्याणरूप हो, अर संभव अर श्री अभिनंदन कल्याणरूप होउ । अर सुपति पर पद्मप्रभदेव खस्तिरूप होहु. अरु सुपार्श्व देव स्वस्तिरूप होहु अर हमारे चंद्रप्रभ स्वस्ति करो अर पुष्पदंत स्वामी अर शीतलनाथ स्वस्ति करो अर श्रेयांशनाथ स्वस्तिरूप हो अरु वासुपूज्य अर विमलनाथ स्वस्तिरूप हो, अर अनंतनाथ अर धमस्वापो सदा कल्याणरूप हो, अर शांति कुंथु अरु अरनाथ कल्याणरूप हो अर मल्लिनाथ स्वस्ति करो अर मुनिसुव्रत अर नमिनाथ स्वस्ति करो अर नेमि जिन स्वस्तिरूप हो अर पाच अर वोर जिन स्वस्तिरूप होहु । अर भूत भविष्यत सर्व जिन स्वस्तिरूप हो। श्रीसिद्धपरमेष्ठी अर आचार्य अर उपाध्याय पर साधुपरमेष्ठी हमारे कल्याणरूप होहु ॥८६१-६५ ॥ ऐसें पढि पुष्पांजलि क्षेपणी। - इति पठित्वा पुष्पांजलि क्षिपेत् । अयाख्यातं प्रांतोदयधरणिधृन्मृर्द्धनि प्रकाशोल्लासाभ्यां युगपदुपयुजस्त्रिभुवनं । दधज्ज्योतिः स्वायंभवमपगतावृत्यपपथो मुखोद्घाटं लक्ष्म्या बजतु यवनी दरमुदयेत् ॥६६॥ अब यथाख्यात चारित्ररूप उदयाचलका मस्तकमें अपना प्रकाश अर तेजकरि एकै काल त्रिभुवनने प्रकाश करतो पर स्वयमेव असहाय ज्योतिने धारण करतो, दूर गयो है आवरण मार्ग जात ऐसो प्रभु मोक्ष लक्ष्मोका मुखका उद्घाटनने प्राप्त होहु ऐसें कहिकरि वस्त्रकी यवनिका कहिये पडदान दूर उत्पेक्षण करें ॥६६॥ इति श्लोकमंत्रपाठानंतरंओं उसहादिवड्ढमाणाणं पंचमहाकल्लाणसंपण्णाणं महइमहावीरवडढमाणसामीणं सिजउ मे महइमहाविज्जा अट्टमहापाडिहेरसहियाणं सयलकलाधराणं सज्जोजादख्वाणं चउतीसातिसयविसेससंजुत्ताग वत्तीसदेवींदमणिमत्थयमहियाणं सयललोयस्स स्संतिपुट ठिकल्लागाउ|| आरोग्गकराणं बलदेववासुदेवचक्कहररिसिमुणिजदिमणगारोवगूढाणं उदयलोयसुहफलयराणं युइसयसहस्सपिलयाणं परापरपरमप्पाणं २८३ Jain Educati ilonal For Private & Personal Use Only library.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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