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________________ प्रतिष्ठा पाठ JORCHENRAIGARETIRROCC अर वहां जलके स्थानके अधीशनिने योग्य आसन पान अहवख मनोज्ञनिकरि बितोर्ण करि माला गंधयुक्त वस्त्र तथा फलनिकरि द्विताय | है वेदीपति ल्याव ॥७५५॥ तं वारकं वासवपाणिनीतं स्वस्त्यादिमरुपचर्य यो। श्रीशांतिके मंतकृता पुनीते संस्थाप्य यज्वाऽर्चनमाकरोतु ॥ ७५६ ॥ अर सौभाग्यवंतीनिकरि ल्यायो जो मंगल कलश तिसने इंद्र अपना हाथकरि ग्रहणकरि स्वस्तिवाचन मंत्रनिकरि पूजा कर अरु शांति यंत्रमें कि अनेक मंत्रनिकरि पवित्र कियो तीहमें स्थापन करि पूजन करो ॥ ७५६ ॥ ततः पुरस्कृत्य जिनेशपेटां श्रीमातरं वा कृतिकर्मपूर्व। जिनद्रमात उपदिश्य गर्भकल्याणपूजां वितनोतु शक्रः ॥ ७५७ ।। तातं जिनेद्रमूर्तिक जिस पंजषामें रखी है उसफूअर श्रीमाता अग्रभाग स्थापि अर गर्भ कल्याण पूजा करो। ७५७॥ अत्र चतुर्विंशतिमातृणां नामोई शपूर्वकं गभतिथोनुद्दिश्य पृथकमंडले पूजा इष्टिः कतव्या। तदुत्तर सिद्धभक्त्यादिपाठे कायोत्सर्गः मंत्रजपश्च । ___ इहां चोईस तीर्थकरांकी माताका नामपूर्वक गर्भकल्याणको तिथिनिकू बोलि वेदोंमें मंडल मांडि जुदी पूजा करणो। पोक्के सिद्धभक्ति आदिका पाठ पढ़ि आचार्य तथा यनमान कायोत्सग करै अरु मंत्रको जप करें। SEAR-OCTeॐtitSCR5R turnima - -:*: - - UARGAR २१५ For Private & Personal Use Only elibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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