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भतिष्ठा
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अथ जन्मकल्याणं। ऐमैं गर्भकल्याणक विधि करि जन्मकल्याणविधिका प्रारंभ करे। सो ऐसे हैं
शुभे विलग्ने सुनवांशके वा जिनेंद्रजन्म प्रबभूव यद्वत् ।
मंजूषिकांतर्गतमाशु विंबं निःकाशयेदार्यवरः कराभ्यां ॥ १५८ ॥ शुभ लग्नमें अर शुभ नवांशकमें जैसे प्रथम साक्षात् जिनेद्रको जन्म होतो भयो तैसे मंजूषिकाके अंतर्गत मूर्तिनै प्राचाय दोऊ हाथासे | निकास॥७५८॥
वादिननादोल्वणनंदनंदजयेतिशब्दप्रभृतीनुदीर्य ।
भद्रासने स्थाप्य सुसिद्धमंतैः पुष्पप्रकीर्णावलिमुत्क्षिपेत ॥ ७५६ ॥ तब तहां वादिनिका नाद अर उच्च जय जय नंद नंद इत्यादि शब्दनिने उदीरण करि उस विवकू भद्रासनमैं स्थापन करें अर सिद्ध मंत्रनिकरि पुष्प आवलीकूक्षेप ॥७५६ ॥
__ओं ही त्रैलोक्योदरणधीर जिनेंद्र भद्रासने उपवेशयामि स्वाहा । इत्युक्त्वा पुष्पांजलिं क्षिपेत् । ताका मंत्र-ओं ह्रीं तीन लोकका उद्धारमें धोर ऐसा जिनेंद्रने भद्रासनमें उपवेशन करु हूं। इस मंत्रकरि पुष्पांजलि क्षेपणी।
तदैव घंटानकसिंहभेरीशब्दैश्चतुर्धा त्रिदिवालयानां ।
संघो नमन्मौलिरुपात्तहर्षोऽभ्युपाययौ वेति नमो जिनाय ॥६॥ तहां उसहो वखत घंटा शब्द अरु ढोल शब्द अर सिंहशब्द अर भेरी शब्द इन शब्दनिकरि च्यारि निकायके देवनिको संघामस्तक नयाय हर्षसंयुक्त नमो जिनेंद्र ऐसे आवतो भयो॥६॥
इंद्रः ससैन्यान्यसुरेशवर्यो निर्वर्त्य देवद्विपमुन्नतांगं । ऐरावतं स्वस्वनियोगशक्तान् कुर्वीत दंडातपवारणाद्यैः ॥ ७६१ ।।
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२४॥
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