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________________ प्रतिष्ठा पाट २४५ प्रवर्त्यते यत्र सरस्वती हि स्वयंप्रबुद्धा न जहाति पार्श्व ॥ ७५२ ॥ 8 . अर जिन करि रात्रिदिन छंद शास्त्र कला चातुर्य तथा गोष्ठी जो संसार सुख वार्ता तथा पुराण आदिकी चर्चा पनोहर प्रवचन करिये तहां स्वयं जागती सरस्वती है सो माताका नजदीकपणाने नहीं छोडै है ॥ ७५२॥ इत्यायुपाक्लृप्तकुमारिकाणां सार्थेन पूज्या जननी जिनेशः। मासान्नवाथोपनिनाय यदवा यामान दिनानि व्यतिसंक्रमेण ॥ ७५३ ॥ __इन आदि कल्पना किई दिक्कुमारिका समूह करि सेवित श्रीजिनेशकी माता उत्कृष्ट नव महीना अथवा नवदिन तथा प्रहर पर्यंत ययाl योग्य गर्भवासको मंगल करै । ७५३ ॥ BSPECIALGADASASHARABARIKAALCRICS अथ प्रभाते सौभाग्यसीमंतिनीकृतयात्राविधानं । तथाहिअथ प्रभात समय सौभाग्यवती स्त्रियां जलयात्रा करें अर्थात कलश भरि ल्याव सो ऐसे पुरोपकंठे सरिदादिशुद्धनीराणि सौवर्णघटैगृहीतुं । वादिलमांगल्यनिनादपूर्वं गच्छेयुरभ्यर्थपुरंधिमुख्याः ॥७५४ ॥ सुवर्ण आदिके कलशनिकरि नगर समीप तिष्ठती नदी आदिका शुद्धनीर ग्रहण करिवेकूमनोज्ञ स्त्रियां वादिन नाद मंगलीकपूर्वक गमन करें ॥ ७५४॥ जलाशयस्थांश्च वितीर्य योग्यासनादिपानैर्वसनैमनोज्ञैः। संगृह्य शुद्धया कलशैः सृजाक्तवासाफलैर्वेदिमुपाचरेयुः ॥७५५॥ RECRUCIPEACPECIPESA-CA - Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only Nelibrary.org -
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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