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________________ प्रतिष्ठा प्रश्नव्याकरणांगं त्रिणवतिलक्षाधिषोडशसहस्रपदं । नष्टोदिष्टं सुखलाभगतिभाविकथं पूजये चरुफलाद्यैः ॥ ६१२ ॥ तिराणवे लाख सोलह हजार पदसंयुक्त अरु नष्ट उद्दिष्टादि सुख दुःखादिका है प्रश्न जामैं ऐसा प्रश्नव्याकरण अंगन नैवेद्य फलादिक करि पूज़ हूँ॥६१२॥ ओं ही प्रश्नव्याकरणांगायाघम् । अंगं विपाकसूत्र कोट्येकचतुरशीतिसहस्रपदं । कर्मोदयसत्त्वानानोदीर्णादिकथं यजनभागतोऽर्चामि (?)॥६१३॥ एक कोटि चौरासी हजार पदयुक्त अरु कर्मनिका उदय उदीर्णादिककी कथासहित विपाकसूत्र नाम अंगन यज्ञ भागकरि मैं पूजू ओं ह्रीं विपाकसूत्रांगायाघम् । · उत्पादपूर्वकोटीपदपद्धतिजीवमुखषट्कं । निजनिजस्वभावघटितं कथयत्नांचामि भक्तिभरः॥ ६.४ ॥ अरु कोटिपदकी पद्धति मुख्य जीवादिषट् निज निज स्वभावघटित उत्पादपूर्व अंगनै भक्तियुक्त मैं पूजू हूँ॥६१४ ॥ ओं ह्रीं उत्पादपूर्वा गायाघम् । अग्रायणीयपूर्वषण्णवतिकोटिपदं तु यत्र तत्त्वकथा । सुनयदुर्णयतत्वप्रामाण्यप्ररूपकं प्रयजे ॥ ६१५॥ अरु छिन कोटि पदस्युक्त अरु जहां सुनय दुर्नय अरु प्रमाण आदिकी कथा है सो अग्रायणीयपूर्व अंगनै मैं पूजू हूँ ॥ ६१५॥ ओं ह्रीं अग्रायणीयपूर्वा गायाघम् । ALAR-550SACRECORRHOIRALACHAR - - Jhelibrary.org Jain Education For Private & Personal Use Only
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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