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________________ 1 % पाठ HAMROSAGARGEON पदमहितं वृषचर्चाप्रश्नोत्तरपूजितं महये ॥ ६०८ ॥ अरु पांच लक्ष छप्पन हजार पदसहित धर्मचर्चा प्रश्नोत्तर युक्त ज्ञातृधर्मकथा नाय अंगने पूजू हूँ॥६०८॥ ___ओं ही पंचलक्षषट्पंचाशतसहस्रपदसंगताय ज्ञातृधमकथांगाया। उपासकपाठकशिवलक्षससप्ततिसहस्रपदभंगं । (?) व्रतशीलाधानादिक्रियाप्रवीण यजामि सलिलाद्यैः॥६.९॥ अर ग्यारह लाख सतत्तर हजार पदयुक्त अरु व्रत शील आधानादि क्रियाका है प्रवीणपणा जाम ऐसा उपासकाध्ययनांगनं मैं जलादि द्रव्यनिकरि पूजू हूँ॥६०६॥ - ओं ह्रीं एकादशलक्षसप्ततिसहस्रपदशोभितोपासकाध्ययनाया। अंतकृदंगं दश दश साधुजनोपसर्गकथकमधितीर्थम् । तेषां निःश्रेयसलंभनमपि गणधरपठितं यजामि मुदा ॥ ६१० ॥ ___ अर दश दश मुनिनिकों एक एक तीर्थकर समयमै घोर उपसर्ग होय तिनकू निर्वाणका लंभन कहिये पाप्ति होती है ऐसा गणधरपठित | अंतकृदशांग नामकू प्रयोदकरि पूजू हूँ॥६१०॥ ओं ह्रीं अंतकृद्दशांगायाघम् । उपपादानुत्तरकं द्विचत्वारिंशल्लक्षसहस्रपदं । (?) विजयादिषु नियमेन मुनिगतिकथकं यजामि महनीयं ॥ ६११॥ अरु दोय लाख केई हजार (1) पदसंयुक्त अरु दशमुनिही घोरोपसर्ग सहि विजयादि विमाननिमैं उपजें हैं तिनकू कहनेमैं तत्पर ऐसा पूज्य उपपादांगर्ने मैं पूजू हूं ॥११॥ ओं ह्रीं अनुत्तरोपपादिकांगायाघम् । Re% AMRSACRELU २४ For Private & Personal Use Only Jain Education international www.janelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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