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________________ MARCH भतिष्ठा १४३ ASHM45643REOGRAMOLECASTING अपंचपरमेष्ठीजयवंते हो, जयवंते हो,जयवंते हो नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो; आनंद हो, आनंद हो, आनंद हो, पवित्रह, पवित्र हूं, पवित्र है ऐसे पढ़ि णमोकार मंत्र बोले । सो यागमंडलका उद्धार कहिये है। मध्येतेजस्तदंगे वलयितसरणौ पंच पूज्योत्तमादि द्वादश्यर्चा द्वितीये चतुरधिकसुविंशा जिना भूतकालाः। अग्रेष्ट्योर्वर्तमाना अवतरणकृतोऽगे विदेहस्थपूज्या ___प्राचार्याः पाठकाः स्यु मुनिवरसुगुणा वन्हिवृत्ते निवेश्याः॥४३८ ॥ मध्यमै ॐकार पीछे वलयमागमैं पंच परमेष्ठी अरु मंगलादिक द्वादश पूना अरु द्वितीय वलयमैं चोईस तीर्थंकर भूत हैं ते अग्रप दोय वल-| यमै वर्तमान अरु भावी तीर्थकर क्रमत अरु अग्र वलयमै विदेहके जिन बोस, पीछे वलयमै आचार्य, पोके वलयमै उपाध्याय, पीछे क्लयमै साधु परमेष्ठी ऐसे तीन वृत्तमै अनुक्रमकरि निवेशन करना ॥ ४३८ ॥ तेषामगिमवृत्तके गणधरा ऋद्धिप्रशस्ताश्चतु दिक्षु स्युः क्षितिमंडले जिनगृहं चैत्यागमौ सद्वृषाः। एवं स्युनिधयो नवापरविधैर्युक्ता इहाभ्युद्धृते सद्यागार्चनमंडले विलिखिताः पूज्याः स्वमत्रैः सदा ॥ ४३६ ॥ अरु तिनके अग्र ऋद्धिधारी गणधर अरु चतुर्दिशामैं पृथ्वीमंडलमैं चैत्य चैत्यालय जिनागम जिनधर्म ऐसें नव वृत्तमैं नवनिधि जो अपर विधि-युक्तमै उद्धार किया इस यागमंडलमैं लिख्या हुवा अपने अपने मंत्रनि करि सदा पूज्य होय हैं। ४३॥ प्रथमे १७, द्वितीये २४, तृतीये २४, चतुर्थे २४, पंवमे २०, षष्ठ ३६, सप्तमे २५, अष्टमे २८, नवये ४८, कोणचतुष्के ४ एवं कोष्ठकपः । प्रथम वलयमै १७ सतरा, दजामै २४ चौईस इसादि जानना । ये पूजाका कोठा हैं। द्विशतोत्तरतः पंचाशत्स्थानं सुपूजयति यो धीमान् । Jain Education in For Private & Personal Use Only G uinelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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