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________________ भतिष्ठा १४२ Jain Education अथ यागमंडल प्रयोगः । अचित्यचिंतामणिकल्पवृक्षरसायनाधीश्वरमादिदेवं । दाम सृष्टिविधानमृढप्राणिप्रणेतारमबाध्यवाक्यं ॥ ४३५ ।। प्रथम नमस्कार है, हम अचिस चिंतामणि- रूप अर कल्पटन-रूप अर रसायनका स्वामी ऐसा अरु सृष्टिका विधानमै मूखं प्राणीनकू यथाथ उपदेशकर्त्ता अरु अरोक है वचन जाका ऐसा आदि जिनेश्वरनें बंद है ।। ४३५ ॥ स्याद्वादविद्यामृततर्पणेन सुप्तं जगद्बोधयितारमर्च्य । अब यागमंडलका प्रयोग कहिये हैं: श्रीकुंदकुंदादिमुनिं प्रणम्य श्रीमूलसंघे प्रणयामि यज्ञं ॥ ४३६ ॥ मोह-निद्रा करि सूता जगत्नैं स्याद्वाद - विद्याका पान कराय बोधन करनेवारा ग्रह पूज्य ऐसा कुंदकुद स्वामीनें नमस्कार करि श्रीमूलसंमैं प्रतिष्ठा विधान जो है ताहि रचूं हूं ॥ ४३६ ॥ ऐसें निष्ठापण करि । एवं समासादितवेदिकादिप्रतिष्ठयोपक्रियया दृढार्थः । पुष्पांजलि क्षेपममलसार्थे वितीर्य यागोद्धरणेयतेऽहं ॥। ४३७ ॥ वेदिकादिक प्रतिष्ठा रूप सामिग्री करि दृढ़ प्रयोजन जाकैं ऐसी मैं समस्त पात्रनमै पुष्पांजलिनें तेपि करि यागमंडल के अर्थ यत्न करू हूं ॥ ४३० ॥ अथ यागमंडलोद्धारः । अब यागमंलडका उद्धार कहें हैं जय जय जय नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु नंद नंद नंद पुनीहि पुनीहि पुनीहि । ओं णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरीणमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं । For Private & Personal Use Only *x*x a 413 १४२ nelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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