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पतिष्ठा
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OURSHURAMPCASSECASTARA
ों ही ऋषभाजितसंभवाभिनंदनसुपतिपद्मप्रभसुपार्श्व चंद्रप्रभपुष्पदंतशीतलश्रेयोवासुपूज्यविमलानंतधशांतिकुवरपल्लिमुनिसुव्रतनमिनेमिपाश्चवर्धमानांतेभ्यो ह्रीं नमः॥४॥
ओं ही ऋषभादिवर्धपानांतभ्यो नमः॥५॥ ओं हों चतुःषष्टि ऋद्धिसमृद्धिगणघरेभ्यो नमः ॥६॥ ओं ह्रीं असि आ उ सा जिन चैत्यालयागधर्मेभ्यो ह्रीं नमः॥७॥ ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं नमः ॥८॥ ओं ह्रीं है क्रौं श्रीं ह्रीं क्लीं शांति पुष्टि तुष्टिं कुरु कुरु असि आ उ सा झ्वों की हंसतं पंद्रां द्रों द्रावय द्रावय श्रओं द्रों स्वाहा ६ ओं हां ह्रीं ह्र हौं : पंचपरमेष्टिभ्यो नमः ॥१०॥ ओं ही अप्रतिचक्र फट विचक्राय झौं झों स्वाहा ॥११॥ ओं हाँ हों ह ह्रौं हः श्रोसिद्धचक्राधिपतये अष्टगुणसमृद्धाय फट् स्वाहा ॥१२॥ ओं नमोऽ प्राइ ई उ ऊ इत्यादि श ष स ह क्लीं ह्रीं क्रौं स्वाहा ॥१३॥ मातृकायंत्रः। ओं दांतों तं नौं तः॥१४॥ शुद्धिमंत्रः। ओं ह्रीं हां ही इ हौं हः अहं नमो अरहताणं निःसहीए स्वाहा ॥२५॥ जिन मुखावलोकनमंत्रः। ओं नमो अरहंताणं ह्रौं स्वाहा ॥ १६ ॥ मूलमंत्रः । ओं अर्हत सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः ॥ १७ ॥ ओं अह अहत्सिद्धसयोगकेवलिभ्यः स्वाहा ॥१८॥ केवलिमत्रः । ओं ही अहं नंद्यावर्तवलयाय स्वाहा ॥१६॥ नंद्यावर्तपत्रः। ओं अहं य व व ल याय ॥२०॥ यववलय मंत्रः
ओं ही अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमतं श्रावय श्रावय सं सं क्लीं की ब्लून्द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय हं संभवी दी हंसः स्वाहा ॥ ॥२१॥ अमृतमंत्रः।
ओंक्षांची ते क्षों क्षौं क्षः नमोऽहते सर्व रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा ॥२२॥ रक्षामंत्रः।
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