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________________ प्रतिष्ठा RECERPERSASURECORICADAIC सुवर्ण-शलाका करि कुंकुम करि लिख, लवंग अररक्तपुष्पनि करि ॐहों श्री अहनमः' ऐसा मंत्र एकसा पाठ वार जपि चांदोका पात्रय मिश्री द्ध घृत स्थापन करि तिहगंध करि सुवण-शालाका करि मूर्तिका नेत्र फेरि इंद्र है सो पूरक नाडो बहता नेत्रोद्घाटन करै ४१६-४१८॥ मृलविंबस्य चान्येषां यथायोग्यं समाचरत् । श्राचार्यशक्रयष्ट्रणां मध्ये एकेन सत्कियात् ॥ ४१६ ॥ 3. मूल विंबकी यह विधि है, अन्य विंबनम यथायोग्य कर। इनमें आचार्य १ यजमान १ इंद्रको प्रधानता है, इन बिना अन्य प्राणी नहीं करै! ॥१६॥ये ही केवल ज्ञान प्रप्ति जाननी॥ अथ मन्त्राधिकारः। ___ अथ प्रतिष्ठायामुपयोगिन एव मंत्रा उपोयिन्ते नान्ये, तेषापत्र प्रयोजनाभावः । तत्र पन्ध्यन्ते गु भाष्यन्ते उपासकैरिति मन्त्राः। उक्तञ्च-अनधोत गुरुद्दिष्ट मनुपावदे त्तदा हीनशक्ति भवेत्तस्पा नाचार्य मंत्रिणा सदा ॥२॥... ... ...२... ३ .:.४ . अथ मंत्राधिकार लिखिये है कि-शांत्यादि कर्मके कर्ता यद्यपि यंत्र अनेक हैं, तथापि इहां प्रतिष्ठाके उपयोगी हो यंत्रन उद्दार करिये हैं; अन्य नहीं कहिये हैं क्यूकि अन्यका इहां प्रयोजनका अभाव है। तहां गुप्त भाषिये साधकोंने तातें मंत्र नाम सर्थिक है। ___उक्तंच-नहीं प्राप्त भया है गुरूपदिष्ट मंत्र जानै ऐसा पुरुषके समीप यंत्र पदै तौ वह यंत्र शक्तिहीन हो जाय तात मंत्रधारी पुरुष बहुत बार अथवा उच्च कर करि नहीं उच्चारण करिये सदा ॥१॥... ... ... ... ........३ ... ...४ (इस यंत्रका आकार पृथक् दिया है) अथ मंत्राणि। अब साधारण मंत्र कहैं है,भों ही णयो अरहताणं इत्यादि केवलिपगणतो धम्पोसरणं पन्बजामि क्रौं ह्रीं स्वाहा ॥१॥ ओं ही नयः ॥२॥ ओं द्रीं श्री नमः॥३॥ कसकसकAAAA - G Jain Education ibrary.org For Private & Personal Use Only & Ional
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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