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________________ NROECI P PAROSPESAMEERUECRETARAKES आचाल्यविंबेऽगनिवासभूमौ विलेखनीयं पटुनविकेन । सुवर्णलेखिन्यजयंत्रधार्या श्लाघ्या रहस्येव मनःप्रसत्तौ ॥ ४१४॥ अरु अचाल्य मूर्ति होय तौ ताकी अनभूमिमें चतुर आचार्यनै सुवर्णकी लेखनी करि मूल मंत्र संयुक्त एकांत पनकी प्रसन्नता-पूर्वक लिखना॥४१४॥ (इस यंत्रका आकार पृथक् दिया गया है) अथ नयनोन्मीलनयंत्रम् ॥१५॥ अब नयनोन्मीलन यंत्र कहिये हैं अनाहतं समावेष्टय ठकारैश्च स्वरैः कूमात् । क्लीं झ्वी क्ष्वी हंसः सद्वीजै रंभोमंडलमध्यतः ॥ ४१५ ॥ मध्य कर्णिकामैं अनाहत लिखे, फिरि वलय देय ठकारन करि वेष्टित करै, पीछे चलयमै स्वर लिदै, पीछे बलयमैं अमृताहरनि करि ६ बेहै, पीठे मलमंडल लिखे ॥ ४१५॥ कुंकुमाथै लिखेद् यंत्रं पाले स्वर्णादिनिर्मिते। लवंगादिभवैः पुष्पैः पद्मरागसमप्रभः ॥ ४५६ ।। ओं ह्रीं श्रीं अहँ नमो मंत्र जपेदष्टोत्तरं शतं । तद्रौप्यपानविन्यस्त सिताक्षीराज्यसंयुता ॥ ४१७॥ विदध्यात्तेन गंधेन चामीकरशलाकया। चक्षुरुन्मीलनं शकूः पूरकेन शुभोदये ॥४८॥ CMCN945%8DGREENCHAR - Jain Educational For Private & Personal Use Only alibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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