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________________ प्रतिष्ठा १३१ Jain Education ॐकारके मध्य ‘ॐ वषट् ह्रीं णमो अरहंताणं वौषट्' ऐसा लिखै, ताकू ह्रींकार-वेष्टित करै, ताके वलय आठ पावडीका कमल क, ताम 'क्रौं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ब्लू ं सः' लिखे ॐ नमः सहित ; पीछे ह्रीं वेष्टन क्रौं रुद्ध करि जलमंडल अरु पृथ्वीमंडल मातृका संयुक्त लिखे । गेह देवेंद्रयंत्र है सो देवांगना भी मोहित करै ॥ ४११ ॥ सुरेंद्रच विधिना प्रयुक्तं सुरासुराराधितपादपद्मं बिभर्ति कंठे रतिलेादेहो नैरोग्यकारी जलपानकर्तुः ॥ ४१२ ॥ इस सुरेन्द्रयंत्र जो विधि पूर्वक जपें पूजै, सो देव विद्याधरन करि पूजित होय है अरु कामदेव समान रूप होय है । अरु केसरिसें लिख कंठमें धार तथा याकी प्रक्षाल करि पीवै तौ नीरोग देह होय ॥। ४१२ ॥ उद्धारः सुरेन्द्रस्य । (इस यंत्र का आकार पृथक दिया गया है) अथ मातृकायंत्रोद्धारः ॥ १४ ॥ onal अब भगवान्की मूर्ति स्थापन उपयोगी मातृकायंत्र कहिये हैं मध्येऽहं विलिखेत् तदभितो वृत्तेऽष्टकूटाक्षरं रेखानां च चतुष्टयेषु कुलिशामेषु स्थिता मातृकाः । षट्त्रिंशद्भवनेषु च द्विरसगेष्वगेस्मरो भक्तिग चक्रेऽस्मिन् जिनसंस्थितिं विरचयेत् श्रीसूरिमंत्रक्षणे ॥ ४१३ ॥ कणिकाके मध्यमैं हैं लिखे अरु ताके आठ कोठा करै, तिनमें ह म म र ड स ख क इनका कूटअक्षर क्रमसें लिख, जैसे इल्यू" है त, तदनंतर प्यार रेखा चतुष्कोण करै अरु वज्र रुद्ध करें। तिनम प्रदक्षण क्रमतें मातृका स्थापन करै, बजाज में ॐ ह्रीं लिख, छत्तीस स्थान बादकाका अरु बज्रा में चौईस क्लींकार ऐसा यंत्र में मूर्ति स्थापन करि आचार्य सूरिमंत्र देव हैं ॥ ४१३ ॥ For Private & Personal Use Only पाठ १३१ nelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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