________________
अथ निर्वाणसंपत्करयंत्रोद्धारः॥१२॥ अब निर्वाणसंपत्कर नामक यंत्र कहैं हैं
मध्येनाहतसंपुटे मनसिजोद्वीजं रमाभिर्वृतं
तद्वाह्येऽष्टदलेषु पंचजिनराट् वर्णा यथा न्यासतः। तद्वाह्ये दलसीम्नि तन्मनुपुरः शांतिं च पुष्टिं कुरु
द्विः स्वाहेति परं तदेव मनभृन्निर्वाणसंपत्करं ॥४०६॥ मध्य कर्णिकामैं अनाहतका संपुटमैं है वीज सो क्लींकार मध्यगत, तदनंतर वलयमैं श्रींकार मंडल, तदनंतर बलव अष्ट कोठा सिनम 18 असि पा उ सा ह्रीं क्ष्वी हः पः हः ॐ उपं क्रम करि अमृतवर्ण, फिर वलयमैं अमृतवर्णोके अग्र शांति पुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा येह यंत्र, पीछे | ह्रीं वेष्टित क्रौं रुद्ध, येह निर्वाणसंपत्करयंत्र है ॥ ४०६॥ .
निर्वाणपूजनविधौ महनीयमेवं काम्येऽपि हेमरजतप्रतिलब्धिहेतोः।
प्रोक्तं पुरातनमुनींद्रगणेन तद्वन्मोक्षार्थिभिर्गतविभावविभासनैश्च ॥४१॥ येह यंत्र निर्वाणकल्याण-विधिमै पूजने योग्य है अरु कामनाकार्य सुवर्ण रुपैयाका लाभ नियित याकी पूजा पुराव मुनीचरनने अर मोक्षार्थी रागद्वेष-रहितननें कही है ॥ १०॥ (इस यंत्रका आकार पृथक् दिया गया है)
अथ सुरेंद्रयंत्रोद्धारः ।। १३॥ अब सुरेंद्रयंत्र कहैं हैं-मध्ये भक्तित्रिलोक्यां प्रथमपुरुपदं पूर्वमाद्वाननांगे
तत्राद्ये मातृकाया न्यसनमिह वृते रत्नपंचप्रणामः । पात्राः क्रौं ह्रीं नमः स्यादिति मदभुवने तोयपृथ्वीनिबंध
एवं देवेंद्रनकं स्मरति नमति यो देवकांतामनोज्ञः॥ ४११ ॥
FACEBOBALRSMOREOGREGERMIREOCOM
RECEPHARMEROCESUCC
१३०
Jain Educatio
n
al
For Private & Personal Use Only
library.org