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________________ प्रतिष्ठा १२६ ভজ इस यंत्रकों बाम नाडीका उदयमै प्रभात सूर्योदयमै एक हजार आठ बार जप तौ देशकी शुद्धि प्राप्त होय ज्ञानशुद्धि पावे ॥ ४०६ ॥ इदं बोधिसमाधियन्त्रं तपःकल्याणे उपयोगि भवति । येह यंत्र तपकल्याणमें उपयोगी होय है। (इसका आकार पृथक् दिया है ) अथ मोक्षमार्गयंत्रोद्धारः ॥ ११ ॥ Jain Education International अब मोक्षमार्ग-यंत्र कहें हैं: यंवं मोक्षपथप्रदं समवस्सृत्याप्तौ तु पूज्यं श्रये ॥ ४०७ ॥ कणिका के मध्य पंच णमोकार ॐ ह्रीं स्वाहा संयुक्त लिखै; तदनंतर वलय में आठ कोष्टकमै ॐ अ सिआउ सा नमः ऐसा लिख, ताके पीछे बलय में चार कोठामै सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तप लिखै तथा ॐ वेष्टित क्रौं रुद्ध करि भूमंडल लिखै ॥ ऐसें मोक्षमार्गयंत्र समबसरन पुण्य कहिये है ।। ४०७ ॥ नो केवलं यजनसृष्टिषु पूज्यमेव कामप्रदायिमनसोऽर्थसमापने च । मध्ये पंचमनून स्वपल्लवयुतान् तद्वृत्तकोष्ठाष्टके तान्येवाक्षरसंमितानि परितो वृत्ते चतुः कोष्टके । सम्यग्दर्शनज्ञानतत्स्थितितपांस्येवंविधान्यर्जयद् इत्यामनंति मुनयो गतरागभावा बंदीच्युतावपि रुषाभिभवं करोति ॥ ४०८ ॥ यह यंत्र पूजाविधानही मैं पूज्य नहीं है, किन्तु मनोरथ सिद्धिनें भी अभीष्ट है । अरु मुनीश्वर जैसें भ्रष्टकर्मका क्षय इस यंत्र प्रसिद्ध हैं हैं तसें बंदी जो कारागृह में पतित पुरुषनका दुःख नाशमें तथा राजाका रोष निवारणमें भी मुख्य कहिये हैं ॥ ४०८ ॥ मोक्षमार्गचक्रयंत्रं समवसरणे गंधकुटया अधोभागे स्थाप्य पूजनीयं भवति ॥ इस मोक्षमार्गचक्रयंत्रकौं समवशरणमें गंधकुटीके नीचे भागमें स्थापित कर पूजना चाहिये । (इस यंत्र का आकार पृथक दिया है) १७ For Private & Personal Use Only पाठ १२६ www.jainelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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