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________________ BRECSSRAECSIMGESS मंत्रेण यः सह यजेद् गुरुभक्तिशीलः श्रीवर्धमानमुखपद्मविनिर्गतांकं । तस्याशु बुद्धिमुपयाति नरेंद्रचकस्तुत्या विनष्टदुरिता शिवसौख्यलक्ष्मीः॥ ४०४ ॥ जो गुरुभक्त शीलवान् वद्ध पानमंत्र पूजे, ताके दुष्ट ग्रह व्याधि पिशाच सब दूर होंय अरु पोचलपीका पात्र होय ॥४०॥ यो मंत्र अधिवासना कार्यकारि होय है। अथ मन्त्रः । उपरि मन्त्रप्रकरणे वक्ष्यते । तस्माद्विज्ञायजपकाले उन्नयः उद्धारस्वयम् इदं वर्दमानयन्त्रपधिवासनायां काष्ठतिपादिकायामुपरि यन्त्रे तो/सौषधिजलेन वर्द्ध मानपन्त्रोच्चारकविंशतिवारं यावद्विम्बप्लावनं उपयोगीतिदिक्॥ (इसका आकार पृथक् दिया गया है) अथ बोधिसमाधियंत्रोद्धारः ॥१०॥ अब बोधिसपाधियंत्र कहिये हैं, गर्भभक्तिजिनेशपञ्चमनवः श्रीहममेष्टं शुभं। द्विः कुर्वाग्निवधूयुजस्तदभितोवृत्तेष्टवर्गा यथा ॥ पूर्वोक्ता जलभूमिमंडलगता ज्ञानार्कसंपत्करा-- श्चकं बोधिसमाधिनाम जिनपैः स्पष्टीकृतं सिद्धये ॥४.५॥ कर्णिकाके गर्भय ॐकार अरु पंच परमेष्टी वीज अर असि आ उ सा लिखै । पोछ श्रीकार है, पोछ पम इष्ट शुभं कुरु कुरु स्वाहा ऐसा रा लिखि करि वलय तामें पाठ कोष्टक तिनम ॐस्वाहा युक्त अष्ट वर्गलिखै। सोही-वेष्टित क्रों रुद्ध करि जलमंडल अरू पृथ्वोपंडल लिखे । येह जिनराज. ज्ञानकल्याणकी संपत्ति अर्थि बोधिसमाधि नामक कहयो है ॥४०५॥ सव्ये स्वरे समुदयत्यहनिप्रभाते सूर्योदये च सति साष्टसहससंख्यं । यो मंत्रयेदखिलपापविमुक्तदेहस्तत्त्वस्य शुद्धिमुपयातिसमाधियंत्रात् ॥ ४.६ ॥ ACISGARPRAGMANORAASANCE १२ ECRESS Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only R ellbrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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